tag:blogger.com,1999:blog-3984445268308820267.post1023089943898717477..comments2023-10-25T03:18:00.251-07:00Comments on मटुकजूली -पिंजर प्रेम प्रकासिया: संतुलित सोच से सशक्तिकरण संभव-जूलीmatukjulihttp://www.blogger.com/profile/08188417915951811081noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-3984445268308820267.post-81533543249267674062009-12-05T08:17:20.151-08:002009-12-05T08:17:20.151-08:00बहुत बढ़िया आलेख.बहुत बढ़िया आलेख.Neha Devhttps://www.blogger.com/profile/16949522092615457973noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3984445268308820267.post-31841837396770277512009-12-03T22:43:52.999-08:002009-12-03T22:43:52.999-08:00देखिए मटुकजूलीजी, आपने तो हमें प्रौढ़ और परिपक्व बत...देखिए मटुकजूलीजी, आपने तो हमें प्रौढ़ और परिपक्व बता दिया। अब आप ही बताईए एक 20-25 बरस के बच्चे को इस तरह डराना ठीक है क्या ;-) ? दोस्त होकर भी आप हमारे रास्ते बंद किए दे रहे हैं। अभी तो हमें बहुत कुछ करना है।<br />BAHARHAL HASYA VINOD APNI JAGAH HAI, LEKIN AAPNE JO KAHAA KI "आप ऐसे ही बनें रहें", और प्रगति करें BAHUT HI ARTHAPURN, MULYAWAN AUR VICHARNIYE BAT HAI. BAHUT-BAHUT AABHAR.Sanjay Groverhttps://www.blogger.com/profile/14146082223750059136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3984445268308820267.post-22780228071413497092009-12-03T03:52:35.654-08:002009-12-03T03:52:35.654-08:00आभार अंतर सोहिलजीआभार अंतर सोहिलजीmatukjulihttps://www.blogger.com/profile/08188417915951811081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3984445268308820267.post-81841904181570868102009-12-03T03:50:11.138-08:002009-12-03T03:50:11.138-08:00ललित शर्माजी, आभार.. दिक्कत सिर्फ यही है कि कोई का...ललित शर्माजी, आभार.. दिक्कत सिर्फ यही है कि कोई काम या तरीका जबर्दस्ती स्त्रियों पर थोप दिया जाता है. उनकी स्वतंत्रता और समझ को बाधित किया जाता है. इससे प्रतिक्रिया हो जाती है. किन्तु प्रतिक्रिया संतुलित मनुष्य का रास्ता नहीं.matukjulihttps://www.blogger.com/profile/08188417915951811081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3984445268308820267.post-13509182731069315692009-12-02T22:51:19.245-08:002009-12-02T22:51:19.245-08:00"सबसे सुन्दर और संतुलित स्थिति वह है कि जो भी..."सबसे सुन्दर और संतुलित स्थिति वह है कि जो भी प्रताड़ित हैं, उनका संगठन हो. सभी प्रताड़ित व्यक्तियों का संगठन हो, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष. ऐसा संगठन ही संतुलित, सार्थक और सफल हो सकता है"<br /><br />सार्थक लेख<br /><br />प्रणाम स्वीकार करेंअन्तर सोहिलhttps://www.blogger.com/profile/06744973625395179353noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3984445268308820267.post-53597884229281729182009-12-02T10:47:34.393-08:002009-12-02T10:47:34.393-08:00mayuk ji.............../juli ji...........
aap do...mayuk ji.............../juli ji...........<br /><br />aap dono ne bhut hi dileri ka kam kiya hai. lik se hatkar chalne me tamam tarah ki dikkte aati hai. unse ghabarana nahi chahiye. ak sher hai-----hamne bana liya hai ak aur aashiyan, jao yh bat fir kisi tufan se kah do..<br /><br />matuk aur juli ji aap ka kabhi chandigarh aana ho to swagat hai. mai patrkar hu. himachal pradesh ghum aaiye bhut achchhi jagah hai....<br /><br /><br /><br />mukund,<br /><br />mobail number 09646046021Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/01960374204033338661noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3984445268308820267.post-53885596817121408152009-12-02T10:27:52.258-08:002009-12-02T10:27:52.258-08:00संतुलन का सौन्दर्य सुंदरियों का स्वभाव है. इसे खोक...संतुलन का सौन्दर्य सुंदरियों का स्वभाव है. इसे खोकर वे अशक्त होंगी और पराजित भी. हम 36 गढी मे कहते हैं।<br />"जेखर काम उही ला साजै, नइ होय त ठेंगा बाजे"<br />जिस कार्य के लिए जो बना है उसे वही कार्य करना चाहिए,अन्यथा परिणाम विपरीत ही होता है।ब्लॉ.ललित शर्माhttps://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3984445268308820267.post-51129266621469992712009-12-02T04:12:34.950-08:002009-12-02T04:12:34.950-08:00अरविन्द मिश्राजी को आभार
समाज के नियम कितने सुनहल...अरविन्द मिश्राजी को आभार<br /> समाज के नियम कितने सुनहले हैं , इसी पर तो विचार करना है. हमारा प्रेम अभी उदात्त हुआ नहीं , वह उस मार्ग पर अवश्य है. हम इस अस्तित्व के आभारी हैं जिन्होंने हमें इसे जीने का मौका दिया.matukjulihttps://www.blogger.com/profile/08188417915951811081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3984445268308820267.post-58952541465544557172009-12-02T04:02:51.294-08:002009-12-02T04:02:51.294-08:00संजय ग्रोवर जी
लिखते वक्त कई बार सामान्यीकरण करना ...संजय ग्रोवर जी<br />लिखते वक्त कई बार सामान्यीकरण करना पड़ता है , लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आँखें मूँदकर पुरुष या स्त्री मात्र के बारे में कुछ कहा जा रहा है. अंततः हर मामले को देखकर ही कोई निर्णय लेना पड़ता है. <br /> आपने असहमतियाँ नहीं लिखी. उतना लिखना कठिन होता है खासकर टिप्पणी में , मैं समझती हूँ . जितना भी लिखा गया है, विचारोत्तेजक है. जिंदगी बहुत बड़ी है , उसके अनंत पक्ष हैं. इसलिए कुछ न कुछ सच सबकी बात में होता है. आपकी बात में भी आंशिक सत्य है. मनुष्य मात्र को विरासत में बहुत सा कूड़ा मिला है. लेकिन विरासत को ही दोषी मानकर मुक्त नहीं हुआ जा सकता. सबको अपना परिष्कार स्वयं करना ही पड़ता है.matukjulihttps://www.blogger.com/profile/08188417915951811081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3984445268308820267.post-63394468237768393912009-12-02T03:44:29.217-08:002009-12-02T03:44:29.217-08:00अंशुमालजी, सही कहा. बढ़िया निरीक्षण.अंशुमालजी, सही कहा. बढ़िया निरीक्षण.matukjulihttps://www.blogger.com/profile/08188417915951811081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3984445268308820267.post-37619454569952784352009-12-01T23:43:42.947-08:002009-12-01T23:43:42.947-08:00प्रभावित करता है आपका यह चिंतनपरक मौलिक लेखन -सच ह...प्रभावित करता है आपका यह चिंतनपरक मौलिक लेखन -सच है प्रेम की उदात्तता की अनुभूति से श्याद कुछ लोगों को प्रकृति ने ही वंचित कर रखा है !<br />मटुक -जूली उदात्त प्रेम के पर्याय बन चुके हैं -मगर समाज के कई समकालीन 'सुनहले 'नियम कायदे होते हैं -जीने वह टूटने पर आक्रामक हो उठता है ~ 'आप अपनी 'अभिव्यक्ति जरूर देती रहें, तब भी तदापिभी ! शुभकामनाएँ !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3984445268308820267.post-70004600174424388772009-12-01T23:35:24.886-08:002009-12-01T23:35:24.886-08:00मैं कह सकता हूं कि इन्हीं जूली को मैं दूरदर्शन के ...मैं कह सकता हूं कि इन्हीं जूली को मैं दूरदर्शन के विभिन्न चैनलों पर देखता-सुनता था और कायल होता था। कुछ असहमतियां हैं। बतौर सहमति मैं यह कहना चाहूंगा कि महिलाओं को इतना ज़रुर ध्यान में रखना चाहिए कि हां, अत्याचार हुए, हो रहे हैं, और उसमें आज का पुरुष भी शामिल है लेकिन यह स्त्री-विरोधी व्यवस्था आज के पुरुष ने नहीं बनायी। उसको भी यह मानसिकता ठीक उसी तरह विरासत में मिली है जैसे स्त्रियों को खुद अपना ही दमन या विरोध करने की मानसिकता। इस लिए हर पुरुष या पुरुष मात्र के साथ एक ही भाषा या एक ही सोच के साथ बात करना तर्कसंगत नहीं है। हां, यह भी सच है कि जिसको जिस व्यवस्था से फायदा होता है उसे बनाए रखने के लिए तरह-तरह के तर्क और तरकीबें ढूंढता है। हिंदुस्तान में ब्राहमणवाद या वर्णवाद इसका बहुत बड़ा उदाहरण है।Sanjay Groverhttps://www.blogger.com/profile/14146082223750059136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3984445268308820267.post-12392501970350864232009-12-01T22:25:38.297-08:002009-12-01T22:25:38.297-08:00सामाजिक व साहित्यिक परिपेक्ष्य में संगठनों की क्या...सामाजिक व साहित्यिक परिपेक्ष्य में संगठनों की क्या भूमिका है, हम अच्छी तरह से जानते-समझते हैं। सभी संगठनों में केवल राजनीति होती है सामाजिक सरोकार नहीं। <br /><br />स्त्रियों पर हर रोज होने वाले अत्याचारों पर ये संगठन मौन साधे रहते हैं। रसूख के हिसाब से संगठन काम करते हैं।Anshu Mali Rastogihttps://www.blogger.com/profile/01648704780724449862noreply@blogger.com