tag:blogger.com,1999:blog-3984445268308820267.post4463059541245868032..comments2023-10-25T03:18:00.251-07:00Comments on मटुकजूली -पिंजर प्रेम प्रकासिया: पीसू इंडिया न्यूज पोर्टल ( www.pisuindia.com) के द्वारा लिया गया साक्षात्कारmatukjulihttp://www.blogger.com/profile/08188417915951811081noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-3984445268308820267.post-52072280144852257272009-12-11T20:24:59.051-08:002009-12-11T20:24:59.051-08:00अनिरुद्धजी , आपकी बातों पर विस्तार से एक पोस्ट लिख...अनिरुद्धजी , आपकी बातों पर विस्तार से एक पोस्ट लिखने का इरादा है. अभी इतना ही.matukjulihttps://www.blogger.com/profile/08188417915951811081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3984445268308820267.post-86923162605122945782009-12-11T20:23:22.119-08:002009-12-11T20:23:22.119-08:00annirudhji
आपके विचार बहुत ही अच्छे हैं. हमारी सहम...annirudhji<br />आपके विचार बहुत ही अच्छे हैं. हमारी सहमति है. <br />हमारी जिज्ञासा है कि क्या समाज अभी वाकई व्यवस्थित है ? और अगर व्यवस्थित हंै तो क्या आप इससे संतुष्ट हैं ? क्या इसमें परिवर्तन की जरूरत नहीं है ? <br />जिन लोगों को इस व्यवस्था से फायदा है वे इसकी रक्षा हर तरह से करना चाहते हैं. जो इस व्यवस्था से शोषित हैं वे इससे अलग हट जायेंगे और शोषण होने नहीं देंगे. शोषण न होने देना अगर अवव्यस्था का फैलना है , तो हम चाहेंगे कि ये खूब फैले.<br />जिस दिन हमारी व्यवस्था म स्त्रियों को सही ढंग से जीने का अधिकार मिलेगा, उसी दिन छोड़ने पकड़ने वाली सारी बातें हल हांेगी.matukjulihttps://www.blogger.com/profile/08188417915951811081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3984445268308820267.post-69921985138645594652009-12-11T04:54:32.281-08:002009-12-11T04:54:32.281-08:00मटुक सर प्रणाम ,
व्यक्तिगत स्वतंत्रता व समाज में व...मटुक सर प्रणाम ,<br />व्यक्तिगत स्वतंत्रता व समाज में व्यवस्था दो अलग अलग पहलु है . अगर किसी एक पे जोर दिया जाये तो दूसरा प्रभावित होता है . आपका कथन सही है की हर व्यक्ति को अपने तरीके से जीने का अधिकार है .पर समाज में लोगो का मानसिक स्तर अभी ऐसी स्वतंत्रता का उचित आनंद लेने योग्य नहीं है . आपने और जूली जी ने अपना पक्ष बहुत मजबूती से रखा है . ऐसा प्रतीत होता है की आपके रिश्ते में बहुत गहराई है . आपका कहना सही है की आपको अपना जीवन अपने हिसाब से जीने का अधिकार है लेकिन यह भी निश्चित जानिए की अगर इस जीने के अधिकार का विस्तार किया गया तो समाज में अव्यवस्था फ़ैल जाएगी . कानून में शादी की उम्र २१ साल रखी है इस उम्र तक व्यक्ति इतना समझदार तो हो जाता है की उसे पता हो की जिसके साथ वो शादी कर रहा है वह उसके योग्य है की नहीं . अगर कोई व्यक्ति स्वतंत्रता का पक्षधर है तो उसे शादी के बंधन में नहीं पड़ना चाहिए . शादी के पहले हर व्यक्ति जानता है शादी एक सामाजिक और क़ानूनी बंधन है . जिसके साथ आप शादी कर रहे है वह भी आपसे यही उम्मीद कर रहा होता है .इस लिए मेरा तो यही कहना है की शादी करने के उपरांत स्वतंत्रता की बात ठीक नहीं है . ऐसा हो सकता है की जिसके साथ आपकी शादी हुई हो उससे आपकी पटरी नहीं बैठ रही है और विना प्रेम के वैवाहिक जीवन में कोई अर्थ नहीं है इसलिए आपका पक्ष भी सही जान पड़ता है . इसलिए मेरा तो मत है की स्वतंत्रवादियो को विवाह करना ही नहीं चाहिए क्योकि प्रेम सिर्फ एक बार थोड़े होता है वह तो जीवनभर होता ही रहता है इसलिए किस किसको छोड़ेंगे .Aniruddha Pandehttps://www.blogger.com/profile/18430513470416682890noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3984445268308820267.post-65570394692140362822009-10-10T04:30:46.558-07:002009-10-10T04:30:46.558-07:00कभी आईना उठा के तेरे रू-ब-रू जो देखा
मैं तो ये समझ...कभी आईना उठा के तेरे रू-ब-रू जो देखा<br />मैं तो ये समझ ना पाया, मेरी शक्ल है या तू है<br />इतना तो इश्क-ए-यार में खो जाना चाहिये<br />तस्वीर-ए-यार खुद में नजर आना चाहिये<br /><br />प्रणामअन्तर सोहिलhttps://www.blogger.com/profile/06744973625395179353noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3984445268308820267.post-53445372822510325572009-10-10T04:02:57.954-07:002009-10-10T04:02:57.954-07:00वाह गुरु जी वाह,"बहुत कठिन है डगर पनघट की&quo...वाह गुरु जी वाह,"बहुत कठिन है डगर पनघट की" अब आपने जेट युग मे रिक्शा पकड़ लिया है,आपकी दलीलें बहुत बढिया हैं-लेकिन प्रेम प्रकटन पर ही समझ आयेंगी। बधाईब्लॉ.ललित शर्माhttps://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.com