गोलघर का भाग्य
1971 ई. में पहली बार मैंने पटना गोलघर को आश्चर्यचकित होकर देखा था. उस समय मैंने पटना काॅलेज में इंटरमीडिएट में नाम लिखाया था. ज्यों-ज्यों गोलघर की सीढ़ियों पर चढ़ता गया, त्यों-त्यों पटना शहर अपना रूपाकार खोलता गया. शीर्ष पर चढ़कर नीचे देखा- हदास लगाा. नीचे जमीन पर चलते आदमी और चरती गायें बिल्कुल छोटी-छोटी मालूम पड़ने लगीं. इस उफँचाई को पहली बार छुआ था. सर्पाकार गंगा के किनारे बसे पटना का पूरा नजारा सामने था. मन आह्लाद से भरा था और इस रोमांचकारी दृश्य की मन ही मन रिर्पोटिंग अपने ग्रामीण मित्रों से कर रहा था. नीचे उतरा तो जिज्ञासा हुई, इसके अंदर क्या है? क्या यह ठोस गोल पहाड़ है या अंदर कोई आकाश है? उसका एक दरवाजा दिखाई पड़ा. उससे अनुमान हुआ कि अंदर आकाश होगा. उस छोटे आकाश को देखने के लिए मन मचलने लगा. मालूम हुआ कि इसमें अनाज रखा जाता है. अंग्रेजों ने इसे अकाल का सामना करने के लिए गोदाम के रूप में बनाया था. तो क्या अंग्रेज दयालु भी थे? गोलघर को गोदाम बनाये रखना मुझे पसंद नहीं था. सोचा जब मैं पढ़-लिखकर मुख्यमंत्राी बनूँगा, तब इसे सुसज्जित करूँगा और देखने लायक बनाउफँगा- अंदर से ‘हू’ करने पर कैसा गूँजेगा! मजा आयेगा. बड़ा हुआ. पढ़-लिखकर साहित्य का प्रोपफेसर हो गया. कल्पना में गोल-गोल गप रचने वाला! कल जब राज्यपाल महोदय गोलघर पर चढ़े तो मुझे कुतूहल हुआ. मेरी स्मृति के अनुसार देवानंद कुंअर पहले राज्यपाल हैं जो गोलघर देखने गये. सुबह खबर आ गयी कि गोलघर का भाग्य खुलेगा. उपमुख्यमंत्राी सुशील कुमार मोदी को साध्ुवाद कि जिनके प्रयास से किशोरावस्था से ही मन में संजेायी गयी लालसा पूरी होने जा रही है. खबर है कि इस परिसर में प्रकाश और ध्वनि की व्यवस्था के साथ कैपफेटेरिया और हैंडीव्रफाफ्रट की दुकानें भी खुलेंगी. जैसे लालकिले में मुगलों का इतिहास दिखाने का रोचक वफार्यव्रफम प्रकाश और ध्वनि के सहारे चलता है, वैसे ही पटना के इतिहास की दिलचस्प जानकारी देने की व्यवस्था यहाँ भी की जायेगी. आखिर 62 वर्षों के बाद किसी सरकार को सूझा कि यह भी एक काम है जो करने लायक है. सरकारें आयीं और गयीं, लेकिन विकास का सेहरा इन्हीं के सर पर बँध्ने जा रहा है. अगर ईमानदारी से यह सरकार काम करती रही, तो अवश्य ही इतिहास में नाम छोड़ जायेगी. इतना ही नहीं, बहुत संघर्ष के बाद भी प्रेमचंद रंगशाला में रौनक नहीं लौटी थी, वह लौटेगी. भारतीय नृत्य कला मंदिर में जब-जब जाड़े की रात में कोई कार्यव्रफम देखता तो लगता कि क्या यह प्रान्त अनाथ है? कोई मुख्यमंत्राी इतना भी नहीं कर सकता है कि इसको ऐसा बना दे ताकि जाड़े की रात और गरमी के दिन भी इसका उपयोग थोड़े आराम से किया जा सके? भला हो, उप मुख्यमंत्राी का, अब मुक्ताकाश मंच का भी भाग्य पलटेगा. इसको भी पैराशूट के कपड़ों से ढँका जायेगा. इसमें कैपफेटेरिया और वफन्प्रफेंस हाॅल भी बनाया जायेगा. मेरी जानकारी में पटने में कोई वफन्प्रफेंस हाॅल नहीं है. आज भोलाराम पटने से बाहर है, अन्यथा इस संबंध् में मुझसे बहुत प्रश्न करता और इस बात से खुश होता कि मैं पहली बार सरकार की पीठ ठोंक रहा हूँ. कारण कुल इतना ही है कि इन चीजों के जीर्णा(ार की इच्छा मेरे अंदर तभी से पल रही थी, जब से मैंने इन्हें देखा था.
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