मंगलवार, सितंबर 01, 2009

ब्यूटी पार्लर

इच्छा हुई जरा शब्दकोश में देखूँ, ब्यूटी पार्लर का माने क्या होता है. मिला- `रूप निखारिका´. यानी वह प्राइवेट कमरा जिसमें सुंदरियों के रूप में निखार लाया जाता है. सुंदरियाँ अपने को सजाती हैं, पुरुष भी अपने को सजाते हैं. क्योंर्षोर्षो दूसरों को सुंदर दिखने के लिए, विशेषकर विपरीत सेक्स को. जब पुरुष किसी सुुंदर स्त्राी को देखता है तो उसके भीतर कुछ होने लगता है. उसके भीतर एक कामना कसमसाने लगती है. वह काम विद्युत-उफर्जा में रूपांतरित होकर स्त्राी के दिल तक पहुँचता है. एक कामना वहाँ भी जग जाती है. दोनों तरपफ कामनाजन्य गुदगुदियाँ जगने लगती हैं. एक आनंद-कंपन पैदा होने लगता है. हमें यह कंपन चाहिए, सिहरन चाहिए, इसीलिए हम सजते हैं. हमारी सजावट, हमारी सौन्दर्य-तरंग का उठकर पुरुष या स्त्राी के पास जाना, वहँा आनंद तरंग पैदा करना, उसी तरंग का लौटकर पुन: हमारे पास आना और वैसी ही आनंद तरंग पैदा करना, यही सौन्दर्य-चव्र है. रूप-निखार का यही रहस्य है. लेकिन इस उर्जा की यात्रा यहीं तक नहीं होती. यह आगे बढ़ना चाहती है और चरम सीमा को छूना चाहती है. पहली चरम सीमा का साक्षात्कार देह के तल पर होता है. एक तृप्ति मिलती है, लेकिन उससे बड़ी अतृप्ति भी पैदा हो सकती है, अगर आदमी का व्यक्तित्व देह प्रधन न हो तो. अगर वह व्यक्ति मन प्रधन और भाव प्रधन है तो यह उफर्जा छोटी तृप्ति देकर बड़ी अतृप्ति पैदा कर देती है. इस बड़ी अतृप्ति के कारण वह प्रेम जगत में प्रवेश करता है और वहाँ उस भाव लोक में उच्चस्तरीय तृप्ति और अतृप्ति का खेल चलता है. लेकिन यह खेल यहीं नहीं रुकता. अगर वह व्यक्ति आत्म-प्रधन है या कुछ-कुछ उसकी आत्मा करवट बदल रही है तो उसकी यह उफर्जा उससे भी बड़े तल पर पहुँच कर सम्पूर्ण विश्व में छा सकती है. पूरे ब्रह्मांड को अपने में समा सकती है. सर्व को अपने में विलीन कर सकती है. जैसे एक छोटा-सा बीज पफैलकर विशाल वट वृक्ष बन जाता है, वैसे ही मनुष्य की यह काम उफर्जा पफैलकर सम्पूर्ण ब्रह्मांड को आच्छादित कर सकती है. लेकिन इसके लिए बोध् चाहिए. इसके बिना वह जहाँ का तहाँ भी रह सकती है और बीमार भी पड़ सकती है. ज्ञानी समाज वह होगा जो इस हीरे की पहचान कर सकेगा. उस हीरे को खदान से निकाल कर तराश सकेगा. अज्ञानी समाज उसे कहेंगे जिसे पता ही नहीं है कि इस उफर्जा से क्या-क्या पैदा हो सकता है. जिस खेत की ज्ञानपूर्वक जोताई, बुवाई, निकौनी, सिंचाई आदि नहीं होती, वह जंगल में बदल जाता है. उसमें ऐरे-गैरे वृक्ष निकल आते हैं. जहरीली घास और काँटेदार झाड़ियाँ निकल आती हैं. उसमें विषैले सर्प निवास करने लगते हैं. वह एक भयानक जंगल बन जाता है, जिसमें प्रवेश मुश्किल है और प्र्रवेश करें तो वह खतरे से खाली नहीं है. ईष्र्या उस जंगल की साँपिन है. ध् कँटेदार झाड़ियाँ है. मालकियत जहरीली घास है. काम उर्जा की सही समझ न होने के कारण हमारे समाज की दशा ऐसे ही भयानक जंगल की तरह है. कल ही टीवी पर मैंने देखा - एक सुंदरी व्रधवतार बनी हुई है. उनका आरोप था कि उसके पति ऐयाश हैं. इसलिए पति उस समय न मिले तो वह पति के दोस्त पर ही टूट पड़ी. उन पर पति को बहकाने का आरोप था. काली बनी पत्नी को उनके पति से कौन मिला सकता हैर्षोर्षो अगर मिलाया भी जायेगा, तो वह मिलन उफपर-उफपर होगा, सिर्पफ दिखाने के लिए. भीतर-भीतर घृणा पफलती-पफूलती रहेगी. मजा यह है कि वह स्त्र कम खूबसूरत नहीं है. कितने पुरुष उस पर कुबाZन हो जायेंगे. लेकिन व्रफोध् और ईष्र्या ने उसके सौन्दर्य को बिगाड़ दिया है. उसके प्राकृतिक सौन्दर्य को मलिन कर दिया है. असली ब्यूटी पार्लर वह है जहाँ आत्मा का सौन्दर्य निखारा जाता है. आत्मा के जगते ही शरीर पर एक दीप्ति आ जाती है. उस दीप्ति का कोई जोड़ नहींं. उनकी यह भयानक स्थिति इस कारण पैदा नहीं हुई है कि उसके पति ऐÕयाश हैं. वे तो एक स्वाभाविक वि्रया में लीन हैं. दुखद स्थिति का कारण स्त्रा के अंदर संव्रफमित किया गया वह संस्कार है जो कहता है कि पति तुम्हारी वस्तु है, तुम भी पति की वस्तु हो. दोनों अपनी-अपनी वस्तुओं पर अिध्कार जमा रखो. न इध्र उध्र मैं ताकूँगी, न तुम ताकोगे. ताकना मना है. एक कलकत्ते का शंकर शर्मा भी है जो अपनी पत्नी `चीरहरण कांड´ की खुशबू को सौगात के साथ प्रेम से लेने आ रहा है. वह पत्नी को कहेगा- `जो हो गया सो हो गया. मोहब्बत में कमी नहीं आयेगी´. मेरा अनुमान है कि शंकर शर्मा को खुशबू से अब वह प्यार मिलेगा, जो इसके पहले कभी नहीं मिला होगा. आध्ुनिकाओं ने, जिन्हें कविवर पंत ने मार्जारी(बिल्ली तक कहा है, अपने हाथों अपनी खुशी सड़क पर बेच दी है. सड़क पर पराये पुरुष को पीटने में कौन-सी सभ्यता हैर्षोर्षो स्त्रियाँ ज्यादा निर्जीव होती हैं, इसलिए किसी पुरुष को देखकर कुछ जगता है तो दिल को समझा लेती हैं. लेकिन पुरुष का दिल है कि मानता नहीं. वह ज्यादा सजीव होता है. जगता है और यात्राा पर निकल जाता है. पहुँच जाता है किसी ब्यूटी पार्लर में. वहाँ उसे कुछ सजीव स्त्रिायाँ मिल जाती हैं. खबर है कि डाक बंगला चौराहे के पास दो पार्लरों से कुछ सजीव स्त्राी पुरुष आपत्तिजनक अवस्था में पाये गये और गिरफ्रतार किये गये. `आपत्तिजनक´ शब्द कहाँ से आयार्षोर्षो वे लोग तो आनंदजनक अवस्था में थे लेकिन आप उतने सजीव नहीं हैं कि उस अवस्था को उपलब्ध् हों सकें. इसलिए दूसरों के सुख पर आपको आपत्ति है. आपका दिया हुआ नाम `आपत्तिजनक´ स्वयं में विवादास्पद है. मैं ब्यूटी पार्लर की रंगरेेलियों का समर्थक नहीं हूँ. वह तो इस दमित समाज की देन है. मैं तो उस प्रेम रूपी पफल को लहराते देखना चाहता हूँ, जो प्रफी सेक्स रूपी बाग- बगीचे में बहुतायत से पफल सकते हैं. जहाँ फी सेक्स होगा वहाँ वेश्यालय नहीं होंगे. फी सेक्स की परिभाषा अलग-अलग हो सकती है. इसका जो अर्थ मेरे मन में है, हो सकता है वह अर्थ आपके मन में न हो. मैं इसकी व्याख्या में अभी नहीं पडूँगा. इतना भर कहना चाहूँगा कि तीन प्रकार के ब्यूटी पार्लर होते हैं. तन को निखारने वाला, मन के निखारने वाला और आत्मा को निखारने वाला. पहला शहर में हर जगह मिलता है. दूसरा साहित्य, संगीत, कला आदि में मिल सकता है और तीसरा संत-सभा में. संत समागम सर्वोतम ब्यूटी पार्लर है. लेकिन निंदनीय कोई ब्यूटी पार्लर नहीं. पुलिस के छापे निरर्थक हैं. संत के छापे सार्थक. ब्यूटी पार्लर पर संत ही छापे मार सकते हैं.
31.07.09

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