मंगलवार, सितंबर 22, 2009

गुरु-शिष्या-संबंध (३)

गुरु-शिष्या प्रेम-संबंध सही है या गलत, इसे जानने के लिए यह जानना जरूरी है कि सही या गलत की कसौटी क्या है. उस कसौटी को पहले हम खोज लें.
कोई भी कृत्य सही है या गलत, इसे निर्धारित करने के दो तरीके हो सकते हैं-पहला तरीका है परिणाम देखकर पता करना. अगर कोई कृत्य परिणाम में दुख, तनाव और अशांति ले आता है, तो समझना चाहिए कि कृत्य गलत था. लेकिन इस तरीके के साथ सबसे बड़ी खामी है कि परिणाम मिल ही गया, दुख का फल भोग ही लिया, तो जानकर क्या फायदा? हाँ, इतना फायदा अवश्य है कि भविष्य के लिए जरूरी चेतावनी मिल जाती है. तरीका तो वह सर्वश्रेष्ठ है जो परिणाम आने के पहले ही सूचित कर दे, ताकि आदमी समय रहते चेत जाय और अपना कृत्य बदल ले. इसे पहले ही जानने का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपाय है -कर्ता का अपनी खास मनोदशा या विशेष भावदशा को देखना.क्या उनकी मनोदशा के पीछे कोई लाभ या हानि सक्रिय हैं ? आमतौर पर आदमी की यह मनोदशा होती है कि अमुक कृत्य करने से अमुक लाभ होगा, इसलिए करना चाहिए, अमुक कृत्य से अमुक हानि होगी, इसलिए नहीं करना चाहिए. यानी कृत्य का आधार लाभ या हानि हुआ करता है. इससे बिल्कुल भिन्न एक ऐसी भावदशा भी हो सकती है जहाँ कृत्य ही लाभ हो, अलग से किसी लाभ की आशा न हो और उसे संपादित करने में चाहे जो भी हानि उठानी पड े, उसे उठाने की तैयारी उसके पास हो. यह भावदशा लाभ और हानि की बुनियाद पर नहीं है. इसी मनोदशा में किया गया कर्म सुखमय है, शांतिमय है, पुण्यमय है. लाभ-हानि पर खड ी मनोदशा से किया गया कृत्य पाप है, अशुभ है. संसार में लगभग सभी आदमी पहले प्रकार में आते हैं. विरला कोई प्रेमी या कोई साधक दूसरे प्रकार में पाँव रखता है. ताजा उदाहरण मटुक-जूली के प्रेम का है. उन्होंने किसी लाभ की आशा से प्रेम नहीं किया. प्रेम ही लाभ है. इससे मिलने वाली किसी भी हानि की परवाह उन्होंने नहीं की है. मटुक ने सुख-सुविधाओं से संपन्न अपने ढंग का एक सुंदर-सुसज्जित घर बनाया. उस घर से दिसंबर, २००५ में निकाल दिया गया. वह बिना किसी मोह और शिकवा-शिकायत के निकल गया. 'कोलाहल-कलह-कुटीर' से निकल कर वह 'शांति-कुटीर' में रह रहा है. विश्वविद्यालय ने नौकरी से निकाल दिया. और वह सृजन के आनंद में डूब गया. विश्वविद्यालय के गैर शैक्षणिक माहौल से बाहर अपनी इच्छानुसार पढ़ने-लिखने, खाने-पीने, विश्राम करने और घूमने का मजा वह लूट रहा है. दूसरों के द्वारा खड ी की गयी बाधा उसके लिए सीढ ी बन गयी है. इस भावदशा में जो भी काम किया जायेगा, वह आनंद में बदल जायेगा. जहर भी अमृत बन जाएगा. मैंने पढ ा है मीरा के बारे में-
जहर का प्याला राणा ने भेजा पीवत मीरा हाँसी रे.
मीरा की हँसी कितनी अर्थपूर्ण है ! जहर भेजने वाले सोच रहे हैं -इसको मार देंगे, न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी. मीरा हँसती है इसलिए कि व्यक्ति को मारने से प्रेम नहीं मरता. मीरा हँसती है इसलिए कि परमात्मा ने जो कुछ भी मेरे लिये भेजा है, वह प्रसाद के अतिरिक्त तो कुछ हो ही नहंीं सकता. यह प्रेम में गहन आस्था की परम मनोदशा है. निष्कर्ष यह है कि कोई भी कृत्य अच्छा या बुरा नहीं होता है. करने वाले की मनोदशा अच्छी या बुरी होती है. जबकि मनुष्य निर्मित सारी नैतिकताएँ कृत्य पर निर्भर हैं, मनोदशा पर नहीं. दूसरा यह कि नैतिकता का संबंध सामाजिक व्यवस्था से होता है और सारी सामाजिक व्यवस्थाएँ सामयिक होती हैं. वे अंतिम नहंीं होतीं. तीसरी बात यह कि उसके नियम समाज के औसत और निकृष्ट व्यक्तियों को ध्यान में रखकर बनाये जाते हैं. जो भी व्यक्ति चिंतन करता है, वह सामाजिक नैतिकता से ऊपर उठता चला जाता है.
कुछ लोग कहते हैं कि गुरु-शिष्य-संबंध आध्यात्मिक होता है. गलत बात, कोई भी संबंध आध्यात्मिक नहीं होता. सारे संबंध मानसिक होते हैं. मन के तल पर ही संबंध बनते हैं. मन जहाँ से समाप्त होता है, अध्यात्म वहाँ से शुरू होता है. उस धरातल पर कोई संबधं नहंीं होता, क्योंकि वहाँ कोई दूसरा नहीं होता. वह अद्वैत की अवस्था है. संबंध के लिए द्वैत का होना जरूरी है. हाँ, कुछ संबंध ऐसे होते हैं जो आध्यात्मिक जगत में गति प्रदान करते हैं और कुछ संबंध ऐसे होते हैं जो अध्यात्म से नीचे अतिशय भौतिकता की नाली में ले जाकर पटक देते हैं. मटुक-जूली का प्रेम उन्हें किस दिशा में ले जा रहा है, यह वे दोनों ही जानते हैं, और जो उनके काफी निकट हैं वे जानते हैं और जो आँख वाले हैं, दूर रहते हुए भी वे जानते हैं. वे इन्हें हँसते-खिलते देख प्रसन्न होते हैं. लेकिन जो अंधे हैं, दूर-दराज बैठे हैं, उनके बारे में कुछ भी नहीं जानते ; वे उनका मजाक उड़ाते हैं, अज्ञानतापूर्ण टिप्पणियाँ करते हैं. इस तरह अंततः वे स्वयं उपहास के पात्र बन जाते हैं. उनका अज्ञान उनका ध्यान 'स्व' से हटाकर 'पर' पर भेज देता है और यही उनके डूबने का कारण बना हुआ है. दूसरों को तो वे कभी नहंी समझ पायेंगे और अपने को समझने का अवसर भी वे खोते जा रहे हैं. गौरतलब बात तो यह है कि दूसरों को जानने का एकमात्र मार्ग अपने को जानने से ही खुलता है. जो जितना ही अपने को जानता है, उतना ही अधिक दूसरों को जानने में सफल होता है. क्योंकि आदमी को बाहर से नहीं जाना जा सकता है, अंदर से ही जाना जा सकता है. और दूसरे के अंदर प्रवेश का कोई उपाय नहंीं है. अपने ही अंदर प्रवेश किया जा सकता है. अंदर की दुनिया एक होती है, जो हम हैं, वही दूसरा है. (क्रमशः)े

10 टिप्‍पणियां:

  1. हम तो आपके दाम्पत्य जीवन के लिए शुभकामनाएं देते हैं !

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  2. सच कहा है आपने, दरअसल दूसरे की मनोदशा का आंकलन अपने शब्दों में करना तुच्छ समझ का परिचायक है.
    कोई सलाह के लिए नहीं कह रहा हो, और उस पर जबरदस्ती अपनी सोच थोपना, वो भी ये कह कर की समाज के बिरुद्ध है अन्याय से जायदा कुछ नहीं,
    चूँकि मानवता के मायने क्या है,ये बुद्धिजीवी समझता है एक आम सामाजिक व्यक्ति नहीं ,वहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग को पड़कर और यही कामना है आपकी लेखनी एक नए दौर का आगाज करे .

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  3. pyare mitra rupamji
    aap jaise snehi aur samajhdar logon ka sath pakar hausla aur buland ho jata hai. ek jinda aadmi ki tippani hajaron murdon per bhaari par jati hai. aabhar

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  4. """""गौरतलब बात तो यह है कि दूसरों को जानने का एकमात्र मार्ग अपने को जानने से ही खुलता है. जो जितना ही अपने को जानता है, उतना ही अधिक दूसरों को जानने में सफल होता है. क्योंकि आदमी को बाहर से नहीं जाना जा सकता है, अंदर से ही जाना जा सकता है. और दूसरे के अंदर प्रवेश का कोई उपाय नहंीं है. अपने ही अंदर प्रवेश किया जा सकता है."""""

    MaiN bhi yahi manta huN.
    haN, aapke mail ka reply bhej diya tha. kripya confirm kareN ki mil gaya.

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  5. ओशो को भी लगा था कि भगवान बनने के लिए भगवान अस्तित्व पर सवाल उठाओ. लोग स्वयं तुम्हें भगवान कहना स्वीकार करने लगेंगे. सिर्फ ओशो ही नहीं, जिन-जिन लोगों ने भी भगवान बनने का प्रयास किया, उन्होंने ईश्वरीय सत्ता, उसके नियम कानून को चुनौती दी, उसपर सवाल खड़ा और वो भगवान बन गए. कदाचित आप भी वही कर रहे हैं.
    ईश्वर बनने के बाद, वो व्यक्ति भी उसी समाज का हिस्सा बन जाता है.
    बुद्ध ने पूजा का विरोध किया था लोग उनकी पूजा कर रहें.
    तथाकथित गांधी के अनुयायियों को अपनी सादगी दिखाने के लिए ढ़िढोरा पीटना पड़ रहा है. महीनों पंच सितारा में रहे तो ख्याल नहीं आता, जब कोई हकीकत बताता है तो सादगी अभियान शुरू करते हैं.
    आप कुछ नहीं हैं, और अपनी हैसियत से ज्यादा दिखाना चाहते हैं तो आपको वो हथकंडे अपनाने पड़ते हैं जैसा कि आपने अपनाया.
    एक प्रो के रूप में आपको पटना के बाहर शायद ही कोई जानता होगा, अब आप चर्चित चेहरा हो गए.
    आपने समाज में जो आदर्श स्थापित किया, वो प्रेम पिता-पुत्री संबंध, गुरू-शिष्या संबंध दादा-पोती संबंधों का आदर्श है. इसमें कोई किसी की पत्नी को लेकर भाग जाता है.
    माना कि समाज में कमी है, लेकिन आपके आदर्शों से समाज का क्या स्वरूप होगा. लोकतंत्र में लाख खामियां हैं लेकिन इससे बेहतर तंत्र कौन सा है.
    ब्राहे को जिंदा जलना पड़ा, गैलिलियो को आठ सालों तक नजरबंद रहना पड़ा, उससे समाज को फायदा हुआ. लेकिन आपके इस आदर्श से कितने लोगों को फायदा होगा. अव्वल तो आपका बसा-बसाया घर तबाह हो गया. ये अलग बात है कि आप फिर से नया घर बनाने जा रहे हैं, भगवान न करे इस घर पर भी किसी की नजर लग जाए. क्योंकि उस स्थिति में आप विरोध करने के लायक भी नहीं रह जाएंगे और न ही समाज आपके साथ होगा.

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  6. ममतामोहनपुर जी

    आपके ज्ञान और समझदारी को देखकर किसी का मनोरंजन हो सकता है और कोई अपना माथा पीट सकता है. कोई हँस सकता है और कोई रो सकता है. मैं क्या करूँ ? मैं केवल आपकी ‘हाँ’ में ‘हाँ’ मिला सकता हूँ.
    आपके पहले अनुच्छेद से प्रकट होता है कि ‘कदाचित’् मैं महान् हूँ और भगवान बनने के प्रयास में हूँ. स्वाभाविक है, कोई भी होना चाहेगा और इसलिए ओशो एवं अन्य लोगों की तरह मैं भी ‘ईश्वरीय सत्ता’ और ‘उसके नियम कानून को चुनौती’ दे रहा हूँ.
    ईश्वर बनने के बाद भी लोग इसी समाज के हिस्से हो जाते हैं’, ये उनकी महानता है.
    बुद्ध की पूजा लोग कर रहे हैं ? क्या बुद्ध भी कर रहे हैं ? वे नहीं भी करें तो भी अपराधी हैं . गाँधी के अनुयायी सादगी का ढिंढोरा पीट रहे हैं, इसलिए गाँधी को पकड़ कर ले आना चाहिए और उन्हें न्यायालय में पेश किया जाना चाहिए.
    मैं जब भगवान बनने के प्रयास में हूँ, तो स्वाभाविक है कि हैसियत से ज्यादा दिखाना चाहूँगा. लेकिन आप चाहें तो मेरे हथकंडे को सरकंडे में बदल सकतें हैं. मुझ पर सड़े अंडे फेंक सकते हैं.
    भगवान बनने के लिए और लोगों को चमत्कृत करने के लिए चर्चित चेहरा प्राथमिक चीज है, नहीं तो लोग पहचानेंगे कैसे और पूजा कैसे करेंगे ?
    मैंने जो आदर्श स्थापित किया है, आपका काम है यह देखना कि उसका अनुपालन कितना हो रहा है. अगर नहीं हो रहा है तो उसमें क्या कमी रह गयी है. जिस दिन से मैंने आदर्श स्थापित किया है, उस दिन से आपकी पत्नी को लेकर अभी तक कोई भागा है या नहीं ?
    गैलिलियो का फायदा आज आप समझ रहे हैं. उस समय लोगोें ने नहीं समझा था. मेरा सही मूल्यांकन भी आगे आने वाली पीढ़ी करेगी.
    मेरे घर पर अगर किसी की नजर लगी, तो भले कोई साथ दे या नहीं, आप जरूर देंगे,. क्योंकि आपके अंदर हमदर्दी है. आपको हमदर्दी के लिए धन्यवाद .

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  7. याज्ञवल्क्यजी
    बहुत आभार. आपके बारे में जानने की इच्छा है.

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