शनिवार, सितंबर 05, 2009
मोकर से होकर आ रहा दैवी आंदोलन
जितने भी प्रकार के आंदोलन होते हैं, उन्हें मुख्य रूप से तीन श्रेणियों में रखकर परखा जा सकता है- दैवी आंदोलन, राक्षसी आंदोलन और मानवीय आंदोलन. जिस अंादोलन में मांग को सृजनात्मक रूप दिया जाय, वह दैवी आंदोलन है. जिस माँग के लिए सार्वजनिक अथवा व्यक्तिगत संपत्ति का नुकसान न किया जाय, किसी मनुष्य, जीव अथवा वनस्पितयों का नुकसान न हो, इसके विपरीत फायदा ही हो, उसे दैवी आंदोलन कहा जायेगा. जिसमें जानमाल की बड़ी हानि हो और कुछ लाभ न हो, वह राक्षसी आंदोलन कहा जायेगा. जो आंदोलन मूलतः सृजनात्मक हो, लेकिन थेाड़ा नुकसान भी जिससे हो जाता हो, उसे मानवीय आंदोलन कहा जायेगा. दैवी आंदोलन के सर्वश्रेष्ठ पुरोधा महात्मा गाँधी थे. सत्य उनका साध्य था और अहिंसा साधन. गाँधी के तल पर वह दैवी था, लेकिन जनसामान्य के धरातल पर उतरकर वह मानवीय हो गया था. दैनिक ‘हिन्दुस्तान’ में एक छोटे से अभियान की खबर छपी है, जिसे दैवी आंदोलन कह सकते हैं. सासाराम और आरा के बीच एक ‘मोकर’ नामक हाॅल्ट है. वहाँ के ग्रामीणों की इच्छा है कि यह हाॅल्ट स्टेशन में तबदील हो जाये. इसके लिए जो अभियान वे चला रहे हैं, वह नायाब है, सृजनात्मक है और सराहनीय है. मोकर निवासी भगवान शर्मा और मुृंशी महतो प्रतिदिन प्लेटफाॅर्म की सफाई करते हैं, किनारे लगे पौधों को सींचते हैं. टिकट घर के पास तैनात राजनाथ प्रसाद प्रत्येक यात्री को टिकट लेकर यात्रा करने का आग्रह करते हैं. सभी ग्रामीण टिकट लेकर यात्रा कर रहे हैं. इस तरह प्लेटफाॅर्म को सजाना-सँवारना और वहाँ की आय को बढ़ाने का प्रयत्न करना बिहार के लिए एक दुर्लभ उदाहरण है और है अत्यंत गौरव की बात. आमतौर पर स्टेशन और ट्रेन को गंदा करने वाले लोगों की भरमार रहती है. कम लोग होते हैं जो उसे गंदा होने से बचाते हैं, लेकिन दुर्लभ हैं वे लोग जो उसे साफ करते हैं, निखारतेे हैं. यह खबर रेलमंत्री तक जानी चाहिए और नियमानुसार मोकर हाॅल्ट को स्टेशन में बदलने की कार्रवाई की जानी चाहिए, इसके लिए नियम को थोड़ा शिथिल भी करना पड़े तो ऐसे ग्रामीणों केा पुरस्कार दिया जाना चाहिए. कम से कम दानापुर रेल प्रमंडल के प्रबंधक को समय निकाल कर वहाँ पहुँचना चाहिए और सच्चाई का पता लगाकर ऐसे दिव्य पुरुषों को सार्वजनिक रूप से सम्मानित किया जाना चाहिए. ट्रेन जलाना राक्षसी आंदोलन है. विद्यार्थियों के ज्यादातर आंदोलन ऐसे ही होते हैं, उस काली पृष्ठभूमि में इस तरह का उज्ज्वल आंदोलन और महत्वपूर्ण हो जाता है. अभी हाल में पीएमसीएच और डीएमसीएच के जूनियर डाॅक्टरों की हड़ताल हुई और महज पाँच दिनों में पचपन मरीज मारे गये. इससे बड़ा राक्षसी आंदोलन और क्या होगा? धनपशुओं ने इस पावन पेशे को अपावन कर दिया है. जो मरीजोें का दोहन कर अपना घर भरने के लिए ही पढ़ाई करते हैं; वे ही इतने संवेदनशून्य हो सकते हैं कि मरीजों के लहू से सना हुआ स्टाइपेंड लें. एक ग्रामीण सृजनात्मक आंदोलन के बारे में सोच सकता है, लेकिन एक पढ़ा-लिखा मेधावी डाॅक्टर ऐसा न सोच सकता है, न कर सकता है. इसका कारण क्या है ? इसका कारण है वर्तमान अंग्रेजी शिक्षा जिसने आदमी को राक्षस बना दिया है. उन ग्रामीणों के पास युनिवर्सिटी शिक्षा की दूषित हवा उतनी नहीं पहुँची है, इसलिए वे आदमी बने हुए हैं और देवतुल्य होने जैसा उपर्युक्त काम कर रहे हैं मटुक नाथ चैधरी ऐसे दिव्य आंदोलनकारियों को सलाम करता है और ईश्वर से प्रार्थना करता है कि उनकी सृजनात्मकता दिन-दिन बढ़ती जाये और एक दिन वे अपने लक्ष्य को पा लें.
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