क्या हमने कभी विचार किया है कि ‘वोटकटवा’ षब्द तानाषाही मनोवृत्ति की उपज है ? वोटकटवा का अर्थ है ‘वोट काटने वाला’ । जो वोट किसी बड़ी पार्टी या बड़े राजनेता को मिलने वाले थे, अब वे किसी अन्य उम्मीदवार के खड़े होने से उन्हें नहीं मिल पायेंगे। जीत के प्रबल दावेदारों के सामने हार का खतरा मँडराने लगता है। इसलिए उसे बैठाने के लिए तरह-तरह की साजिषंे रची जाती हैं। कभी उसे भय दिखाया जाता है, कभी उसे लुभाया जाता है। अगर भय और लोभ से रहित कोई जीवट का उम्मीदवार आ गया तो सरकारी तंत्र का दुरुपयोग कर उसका नामांकन ही रद्द कर दिया जाता है। अगर उसे बैठाने की सारी चालें विफल हो जायँ तो फिर उसे वोटकटवा कहकर उसका वोट हड़पने की कोषिष की जाती है।
राजनेता अच्छी तरह जानते हैं कि लोगों का वोट उन्हें इसलिए मिलता है कि कोई पसंद का उम्मीदवार जनता के सामने नहीं होता है। ज्योंही जनता के निकट का कोई उम्मीदवार खड़ा होता है त्योंही वोट के लुटेरे राजनेता हायतौबा मचाने लगते हैं कि अब तो मेरी जागीर गयी। ऐसे ही लोग उन्हें वोटकटवा कहते हैं। दरअसल वे यही कहते हैं कि उन्हें छोड़कर किसी दूसरे को वोट पाने का अधिकार नहीं है। उनकी कोषिष होती है कि चाहे जैसे हो जनता को इस तरह मजबूर कर दिया जाय कि उसे छोड़कर किसी अन्य को वोट देने का विकल्प उसके सामने नहीं रह जाय। इससे कुछ विवष लोग अगर खीझेंगे तो ज्यादा से ज्यादा यही होगा कि वे किसी को वोट नहीं देंगे। उनके वोट नहीं देने से क्या होता है ? क्या उनकी पसंद का कोई उम्मीदवार खड़ा हो जायेगा ? या जो चंद लोग खड़े हैं उन्हीं में से कोई जीतेगा ?
यह कैसा लोकतंत्र है जिसमें ‘लोक’ तो गुलाम हैं और ‘तंत्र’ आजाद ? जिसमें ‘लोक’ मुरझा रहा है ओर तंत्र फल-फूल रहा है ? इस तंत्र की जड़ें काटनी होंगी । नया तंत्र लाना होगा। वर्तमान चुनाव-प्रणाली बदलनी होगी जिसमें जनता के मनचाहे उम्मीदवार के खड़े होने की सारी संभावना खत्म हो चुकी है। एक ऐसी चुनाव प्रणाली की कल्पना करनी होगी जिसमें ऊपर से थोपे गये उम्मीदवारों के खड़े होने की सारी संभावनायें समाप्त हो जायँ। जनता के बीच से नेता पैदा हो। जनता के हित में उनकी इच्छा से वह काम करे। अगर चुने जाने पर वह मतवाला हो जाय तो उसकी लगाम जनता के पास हो। जनता जब चाहे बड़ी बहुमत से उसे आसानी से वापस बुला ले। 5 सालों तक किसी को लूटने का मौका देना अपने को बदहाल बनाये रखने के सिवा और कुछ नहीं है।
लोकतांत्रिक चुनाव प्रणाली का मतलब है कि जो चाहे चुनाव लड़ सके और जनता जिसे चाहे वोट दे सके। वर्तमान चुनाव प्रणाली इसकी इजाजत नहीं देती। मान लीजिए किसी विधान सभा से एक हजार लोग चुनाव लड़ना चाहें तो वर्तमान प्रणाली में वे कैसे लड़ पायेंगे ? इसलिए यह पष्चिमी प्रणाली बदलनी चाहिए । कहने के लिए लोकतंत्र है लेकिन वास्तव में यह आधुनिक राजतंत्र की जननी है। इस प्रणाली में राजनीति पर चंद घरानों का कब्जा है। ये घराने ही दूसरे छोटे-छोटे उम्मीदवारों को वोटकटवा कहते हैं और हर तरह से उन्हें लड़ने से रोकते हैं।
कभी-कभी एक ही परिवार से, एक ही गाँव से और एक ही समाज से एक से अधिक उम्मीदवार खड़े हो जाते हैं। इस परिस्थिति में क्या कोई किसी का वोट काटता है ? नहीं, कोई किसी का वोट नहीं काटता है। सभी अपने ही किये कर्मों का फल वोट के रूप में पाते हैं। इस सूरत में अगर कोई किसी को वोटकटवा कहता है तो वह तानाषाह है, क्योंकि वह दूसरे का वोट भी स्वयं गबन करना चाहता है। आज की राजनीति इसी मनोवृत्ति की है और इस राजनीति को जीवन मिलता है वर्तमान चुनाव-प्रणाली से जो अत्यंत दोषपूर्ण है। इसलिए जितने वोटकटवा हैं उन्हें मिल-जुलकर एक नये राजनीतिक दल की परिकल्पना करनी चाहिए । लेकिन खेद है वोटकटवाओं में से अधिकांष देष-प्रेम की ऊँची भावना से नहीं, तुच्छ लालच में पड़कर खड़े होते हैं और उसकी पूर्ति होने पर मैदान से भाग खड़े होते हैं ।
वोटकटवा के कई अर्थ हैं। उम्मीदवार किस मकसद से चुनाव के मैदान में उतरा है इस पर उसका अर्थ निर्भर करता है। कभी वह धन के लालच में खड़ा होता है और किसी से पैसा लेकर बैठ जाता है या उसका समर्थन करने लगता है। ऐसे लालची उम्मीदवारों को सबक सिखाना चाहिए। कभी कोई राजनीतिक दल फर्जी उम्मीदवार खड़ा कर देता है। इसकी पहचान कर उसे सजा देने का प्रबंध होना चाहिए। कभी किसी को टिकट नहीं मिला तो वह बगावत कर देता है और अपनी ही पार्टी के टिकट पाने में सफल उम्मीदवार को हराने में लग जाता है। ये सारी घटनायंे वर्तमान दोषपूर्ण चुनाव-प्रणाली के कारण ही घटती हैं जहाँ एक अनार और सौ बीमार हैं। अगर सौ बीमार हैं तो सौ अनार होने चाहिए। ऐसी सुंदरतम चुनाव प्रणाली की कल्पना की जा सकती है। मैंने की है। बस उसका प्रयोग करने की जरूरत है । उस चुनाव प्रणाली का जिक्र मैंने अपने घोषणा -पत्र में किया था जिसका संकलन ‘मटुक-जूली की डायरी’ नामक पुस्तक में किया गया है।
अगर देष की दषा पूरी तरह बदलनी है तो भारतीय लोकतंत्र को ऐसी चुनाव-प्रणाली चाहिए जिसमें न कोई वोट का लुटेरा हो, न कोई तानाषाह और न कोई वोटकटवा हो। जहाँ सारे इच्छुक उम्मीदवारों को अपना हक मिल सके और जनता को मनोवांछित प्रतिनिधि।
krutidev010 font ka badhiya converter nahi mil pa raha. isliye bhasa ashudhh ho gayi hai. sudhi pathak maaf karenge
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वोट कटवा मतलब एक तरह से मतों पर डकैती डालना ही है।
जवाब देंहटाएंवोट कटवा कर किसी प्रत्याशी का विजय पर डाके डालने का खेल शातिर राजनितिज्ञ बरसों से करते आ रहे हैं।
वर्तनी दोषों को सुधारे ...वोट कटवा पर रोचक और विचारणीय विमर्श
जवाब देंहटाएंशिक्षा का दीप जलाएं-ज्ञान प्रकाश फ़ैलाएं
जवाब देंहटाएंशिक्षक दिवस की बधाई
कृतिदेव को यूनिकोड में इस औजार से बदलिए-
जवाब देंहटाएंhttp://technical-hindi.googlegroups.com/web/Krutidev010-to-Unicode-to-Krutidev010+Converter09.htm?gda=7_Y1xGkAAAAoiecIUhwFv064Wxa887DGbKa_rrVEjFiNZkE480dAcroZ4o-WvKgOEoPehLypc4mvlw0zUi-TkmdHqTYXTGEP7lg4tgrRy3nt1UU9RAi06hUEt_jusoAqsqZPn14S02OECKgQbmraGdxlZulaYnsh&hl=en
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आपके लेख में तार्किकता अवश्य है!
bahut aabhar Shastriji
जवाब देंहटाएंमज़ेदार बात यह है कि आज "आजादी" के 62 वर्षों में, अर्थव्यव्स्था के सुधारों का तो खूब हल्ला मचाया जाता है परंतु चुनाव प्रक्रिया वही सड़ी-गली और वर्तमान तंत्र के फायदे वाली है।
जवाब देंहटाएंअस्सी करोड़ बेहद गरीबों के देश में इलेक्ट्रानिक मशीनों से चुनाव करवाते है और अब हाई-फाई पह्चान पत्र बनाने में लगें हैं जिंनसे चुनाव करेंगे हम सापंनाथ का या नागनाथ का ।
Dear Matuknathji!
जवाब देंहटाएंNicely written