27 मई, 2011 को अपराह्न 5 बजे महामहिम कुलाधिपति श्री देवानन्द कुँवर ने मेरी बर्खास्तगी के विरुद्ध दायर अपील की कृपापूर्वक सुनवाई की। उस दौरान मैं उनके व्यापक ज्ञान, गहन सूझ-बूझ और प्रखर प्रतिभा से पहली बार परिचित एवं प्रभावित हुआ। आशा जगी कि सुनवाई के उपरांत आदेश लिखवाया जायेगा। दूसरे दिन फैसला फैक्स से विश्वविद्यालय को भेज दिया जायेगा और मुझे भी उचित माध्यम से सूचना मिल जायेगी। 27 की रात बड़ी मुश्किल भरी थी, क्योंकि उसके जल्द बीत जाने का इंतजार था। लेकिन न रात जा रही थी, न नींद आ रही थी। छत पर कुर्सी पर बैठे आसमान को निहारते ही रात बिता दी। 28 को फैसला नहीं आया। उस दिन शनिवार था। सोचा शायद सोमवार को आये ! सोमवार का इंतजार करने लगा। सोमावार आया और चला गया, लेकिन फैसला न आया। इसी तरह एक-एक दिन गिनते हुए 27 जुलाई को दो महीने पूरे होने जा रहे हंै। दो महीने तक प्रतीक्षारत व्यक्ति को ये दो महीने अगर दो साल जैसे लगने लगे तो कोई आश्चर्य नहीं !
महामहिम का निर्णय पाने के लिए मैं 28 जुलाई, 1 बजे अपराह्न से 31 जुलाई, 1 बजे अपराह्न तक एक गोपनीय वन्य वातावरण में त्रिदिवसीय मौन प्रार्थना करने जा रहा हूँ। इस प्रार्थना के दो प्रमुख उद्देश्य हैं। इसका बाहरी उद्देश्य है कि महामहिम सुनवाई हो चुके मेरे मुकदमे पर न्यायसंगत निर्णय तत्काल देने की कृपा करें। भीतरी उद्देश्य यह है कि मुझे बेचैनी से मुक्ति मिले और शांति प्राप्त हो। मैं महामौन में उतर कर अपनी केन्द्रीय सत्ता के निकट पहुँच सकूँ।
इस मौन-प्रार्थना या मौन-साधना या मौन-व्रत में मन की तमाम गतिविधियों को संकल्पपूर्वक नियंत्रित करने के लिए लगातार तीन दिनों तक अथक और तनावरहित प्रयास किया जायेगा। इसलिए मन से जुड़े सारे क्रियाकलाप बंद कर दिये जायेंगे। बोलना बंद, पढ़ना बंद, लिखना बंद, सोचना बंद। लेकिन शरीर के क्रियाकलाप जारी रहेंगे, जैसे- खाना, पीना, नहाना, टहलना आदि; क्योंकि शरीर की सारी क्रियाएँ मनस शरीर से नहीं, प्राण-शरीर से संबंधित हैं और मौन-व्रत में उपयोगी हैं। टहलने के समय रास्ता देखने भर के लिए आधी आँखें खुली रहेंगी जो केवल राह पर टिकी होंगी।
सोचने पर नियंत्रण पाने के लिए यह जरूरी है कि मेरा निवास पावन उपवन के शांत एकांत कमरे में हो, जहाँ किसी का आना-जाना न हो। उसके चारों तरफ नीरस वातावरण हो जिससे विचार को किसी तरह की उत्तेजना प्राप्त न हो। इस दौरान संसार से पूर्णतः संपर्क कटा रहेगा। कोई व्यक्ति मुझसे मिलने की कोशिश नहीं करेगा। तीन दिनों तक मेरा सारा ध्यान आती जाती सांसों का अनुभव करने पर केन्द्रित रहेगा। सांसों के प्रति सजगता साधते हुए उस महाशून्य में प्रवेश करने की कोशिश होगी, जहाँ से निर्मल प्रेम पैदा होता है और वही प्रार्थना कहलाता है।
इस बीच अगर महामहिम का फैसला आता भी है तो कोई भी व्यक्ति मुझे इस बात की जानकारी नहीं देेगा, क्योंकि उस वक्त मुझे इस चीज का इंतजार नहीं रहेगा। मुझे हर हाल में 72 घंटे के व्रत का पालन करना है। इससे आत्मिक शुद्धि और आनन्द की प्राप्ति होगी।
यहाँ स्पष्ट कर देना जरूरी है कि यह मौन प्रार्थना अनशन नहीं है। अनशन एक प्रकार की आत्महिंसा है। हम अपने को सतायें या दूसरों को, बात बराबर है। दोनों ही हिंसा है। आज अनशन लाचारी का हथियार बन गया है। सही उद्देश्य को लेकर सही तरीके से चलायी जाने वाली सशस्त्र क्रांति को मैं इस अनशन से बेहतर समझता हूँ।
मेरी दृष्टि में वास्तविक अहिंसक क्रांति वह है जो जिनके विरुद्ध लड़ाई चल रही है, उनके हृदय में भी क्लेश न पहुँचाये। उनके हृदय में शांति और प्रेम पैदा करने की कोशिश करे। अहिंसक क्रांति की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि यह क्रांति करने वाले को आमूल बदल देती है और दूसरों को बदलने की परिस्थिति पैदा करती है। मेरा प्रयास इसी दिशा में है।
आप सबों की शुभकामनायें इस पथ पर चलने में मेरा पाथेय बनेंगी।
कार्यक्रम
28.07.11
प्रेस वार्ता
स्थल- 303, सरस्वती निवास अपार्टमेन्ट, रोड नं.-12,
राजेन्द्रनगर, पटना-16
समय- पूर्वाह्न 10.45 से 11.45 तक मीडियाकर्मियों से बातचीत।
उसके बाद गोपनीय स्थान की ओर प्रस्थान और 72 घंटे के लिए मौन में प्रवेश
31.07.11
समय- 72 घंटे के बाद मौन व्रत समाप्त और उपर्युक्त स्थल पर
यानी मेरे आवास पर मीडियाकर्मियों से पुनः 4 बजे अपराह्न बातचीत। 72 घंटे के अंदर मेरे भीतर जो घटित होगा, उसे उनके बीच बाँटा जाएगा।
व्रती
मटुक नाथ चैधरी
हिन्दी उपाचार्य (बर्खास्त)
बी. एन. कॉलेज
पटना विश्वविद्यालय
आवास- 303, सरस्वती निवास, रोड नं. 12
राजेन्द्रनगर, पटना-16
दिनांक- 26.07.2011, फोन- 9031227181
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंशुभाकांक्षी
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