जैसे रेलगाड़ी में कई क्लास होते हैं- जेनरल, स्लीपर, एसी-३, एसी-२, एसी-१ इत्यादि,. उसी तरह हवाई जहाज में भी क्लास होते हैं. सबसे सस्ता इकोनॉमी क्लास कहलाता है. बड े-बड े उद्योगपति , नेता, मंत्री आदि इसमें सफर नहीं करते. वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी ने कम खर्च करने का अभियान चलाया है. कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गाँधी इकॉनोमी क्लास में यात्रा करके उदाहरण प्रस्तुत कर चुकी हैं. राहुल गाँधी ने एक कदम और बढ कर ट्रेन से यात्रा की है. इस बात से बिहार के कुछ नवधनाढ्य नेता विचलित हो गये हैं. उनको लगा कि इन लोगों के चलते कहीं फिर से भैंस की सवारी न करनी पड जाय. इसलिए उन्होंने कुछ उटपटाँग सलाह दे मारी. देश को अगर बचाना है और उसे उन्नति के शिखर पर चढ ाना है तो सबसे पहले धूर्त नेताओं से देश को बचाना होगा. यह तभी संभव होगा जब सच्चे और ईमानदार इंसान राजनीति की दुनिया में पैर जमायें.
राजनीतिक पाखंड के कारण बेचारे शशि थरूर कष्ट में पड गये हैं. मितव्ययिता अभियान ने पहले उनसे पंच सितारा होटल छीना और अब हवाई जहाज का लग्जरी क्लास भी छीन रहा है ! क्या यही दिन देखने के लिए वे राजनीति में आये थे और विदेश राज्य मंत्री बने थे ? सुख-सुविधा, ऐश्वर्य और ऐश में जीने वाले व्यक्ति को एक चीज और चाहिए और वह है पावर. तभी पूर्णता का बोध हो सकता है ! इसलिए बड े-बड े पूँजीपति पार्टी को पैसों से खरीदकर सांसद बनते हैं, मंत्री बनते हैं. राजनीति में आने के दो कारगर तरीके हैं-पहला तरीका है गरीब जनता की आँखों में धूल झोंकने की कला में आप माहिर हों तो गरीबों के मसीहा, दलितोें के देवता बन जायेंगे. आपके पास जनशक्ति आ जायेगी और आप नेता-मंंत्री बन जायेंगे. दूसरा रास्ता इससे भिन्न है. उसमें जनता से आपको कुछ लेना-देना नहीं है. आपने अपार धनोपार्जन की राक्षसी-कला हासिल की. आप हो गये अरबपति-खरबपति. जनशक्ति वाले नेता को पैसा चाहिए और धनशक्ति वाले पूँजीपति को पावर चाहिए. दोनों में दोनों में आदान-प्रदान हो जाता है. इन्हीं लोगों के लिए हवाई जहाज का लग्जरी क्लास बना है. वित्त मंत्री से पूछना चाहिए कि अगर ये लग्जरी क्लास में सफर नहीं करेंगे तो वह किसके लिये बना है ? चक्रवर्ती सम्राट दशरथ के पुत्र राम को वन में जमीन पर सोते और कंद-मूल खाते देख वनवासियों का हृदय फटने लगा था. वे कहते हैं कि विधाता के सब काम उलटे होते हैं. जब विधाता ने इनको वनवास दिया तो नाना प्रकार के भोग-विलास व्यर्थ ही बनाये. ये नंगे पाँव पैदल चलेंगे तो अनेक वाहन व्यर्थ बने. जब ये जमीन पर कुश और पत्ते बिछाकर सोयेंगें, तो सुंदर सेज किसलिए बनी है. जब ये पेड़ों के नीचे निवास करेंगे तो विधाता ने महलों को बनाने में क्यों श्रम किया ? इस तरह से वन के स्त्री-पुरुष राम की इस दशा को देखकर बहुत ही पछताते हैं और मन ही मन दैव को दोष देते हैं. मेरी भी हालत शशि थरूर को देखकर उन्हीं वनवासियों की तरह हो रही है. भला जिनका जन्म ही लंदन में हुआ हो. जिनकी मातृभाषा अंग्रेजी हो. अपने प्रांत केरल की भाषा मलयालम जिनकी जुबान पर चढ नहीं पाती हो. जिनकी शिक्षा ज्यादातर अमेरिका और इंगलैंड में हुई हो, जो अंग्रेजी के लेखक और पत्रकार हों, जो २३ साल तक संयुक्त राष्ट्र संघ में विभिन्न राजनयिक पदों पर रहे हों, उनको आप बुलाकर जनप्रतिनिधि बना देते हैं ! जो राजसी ठाट-बाट में जीया है उसे मितव्ययी बनाना चाहते हैं ! यह पाखंड अपने तक रखिये. शशि को प्रामाणिक व्यक्ति बने रहने दीजिये. अभी उन पर विदेशी रंग सवार है इसलिए उनमें एक सच्चाई है. भारतीय राजनीति में पले-बढ े होते तो वे भी कपट-कला में कुशल होते. उन्होंने सच ही कहा- इकॉनोमी क्लास जानवर (कैटल) क्लास है. सभी बड े नेताओं के लिये भी वह जानवर क्लास ही है. लेकिन वे बोलते नहीं हैं. क्योंकि उनकी दो छवियाँ हैं- एक जनता में दिखाने के लिए और दूसरी अपने जीने के लिए. मैं एक दरिद्रनारायण व्यक्ति हूँ और मुझे भी ट्रेन की जेनरल बॉगी कैटल क्लास जैसी ही लगती है जहाँ आदमी पर आदमी ठँूसे रहते हैं. मैं स्लीपर क्लास में चलता हूँ
सोनियाजी और राहुलजी से मैं कहना चाहूँगा कि सादगी जीने की चीज है, दिखाने की नहीं और आरोपित करने की तो बिल्कुल ही नहीं. सादा जीवन था महात्मा गाँधी का और देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद का. राष्ट्रपति का वेतन था उस समय दस हजार. देशरत्न का काम सत्रह सौ रुपये में चल जाता था. वे इतना ही वेतन उठाते थे, शेष देश के नाम पर छोड़ देते थे. सादगी से जीना किसी का स्वभाव होना चाहिए, सादा जीवन जीने में आनंद का अनुभव होना चाहिए. तब तो सादगी सुंदर है. वरना दिखावटी और आरोपित सादगी खतरनाक होती है. वह एक धोखे की दीवार निर्मित करती है. जैसे सोनिया गाँधी ने सोमवार (१४..०९.०९) को दिल्ली से मुंबई की यात्रा विमान की इकॉनोमी क्लास में की. इसकी अच्छी कीमत एअर इंडिया को चुकानी पड ी. उनकी सुरक्षा के मद्देनजर उनके आगे-पीछे और अगल-बगल की कुछ सीटों को खाली रखना पड ा.
मैं वित्तमंत्री को सलाह देना चाहूँगा कि अगर वास्तव में आप खर्च पर किफायत करना चाहते हैं तो हर महीने जितने भी मंत्री और नेता हैं उनके संपूर्ण खर्च का एक ब्यौरा बुलेटिन के माध्यम से जनता के सामने रखने की कृपा करें. जनता जब देखेगी कि एक -एक मंत्री का मासिक खर्च करोड में पहुँच जाता है तो उनकी आँखें फटी की फटी रह जायेंगी. वे फटी आँखें ही अगले चुनाव में अपना हिसाब चुकता कर लेंगी. इसके लिये आपको माथापच्ची करने की जरूरत नंहीं. या लग्जरी क्लास ही खत्म कर दीजिये, क्योंकि जब तक वह क्लास रहेगा, तब तक उसमें चढ ने के लिए प्रभुत्वशाली वर्गों में होड रहेगी. मगर शशि थरूर बेचारे को तंग मत कीजिये. जिस समय आप उन्हें सांसद बनाकर विदेश मंत्री बना रहे थे, क्या उस समय उनको नहीं जान रहे थे ?और विदेश राज्य मंत्री से मैं कहूँगा कि प्यारे शशि थरूर , प्रामाणिक बने रहना जरूर !
मटुकनाथ एवं जूली जी आपका प्रयास सराहनीय है, लेकिन हमें वह चीज पढने को नहीं मिल रही है जिसकी आपसे अपेक्षा थी। आपकी जोडी को हम दिल से पसंद करते हैं इसलिए हम चाहते भी हैं कि युवाओं को जाग्रत करने के लिए कुछ नई चीज आप के माध्यम से मार्केट में आनी चाहिए। इसके लिए एक अच्छा माध्यम है ब्लाग की दुनिया।
जवाब देंहटाएंआपका शुभचिंतक
सुनील
09953090154
प्रिय मटुक चाचा और जूली भौजी को हमारी दिली मुबारकबाद के बाद हम चिटठा जगत की इस नयी बहस में आपका स्वागत करने के बाद बता दें आपकी नयी पोस्ट देखकर आनंद आ गया. कैटल क्लास की जो व्यथा आपने उठाई हो वो ऐसी ही जैसे सौंदर्य के प्रतिमान इस खजुराहो के देश में बदल गए हैं. पहले मांसल बदन पर जोर था अब तो साहब साइज़ जीरो का जमाना आ गया है. आप ऐसे ही मुद्दे उठाते रहिये लेकिन पहले बयान देने के बाद जो पलट जाएँ वो नेता नहीं हो सकते आपने भोला राम के माध्यम से भी कई बातें उठाने का प्रयास किया है चिंता मत कीजियेगा ३७७ अब हट गयी है. कोई कुछ नहीं कर सकता. जैसे आपने पहले भौजी को भी कोप्चे में ज्ञान दिया था, भोला को भी झोला दीजिये. भाभी से कहियेगा इस दिवाली दिए जलाने में खुद आ रहा हूँ. मेरा इंतज़ार करें.
जवाब देंहटाएंआपके तरानों का भी दिल से इंतज़ार है ....अनुभवों कि प्रतीक्षा
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