घटना मुंबई के महाड़ा बिल्डिंग की है. शनिवार की रात. महेश कामथ नामक एक पैंतीस वर्षीय टैक्सी ड्राइवर कामाग्नि में जल रहा था. कोई उपाय न पाकर अंत में एक कुतिया के साथ संभोग कर उसने अपनी प्यास बुझायी. मेरे पास ४ सितंबर के 'दैनिक भास्कर' की खबर को छोड कर विशेष जानकारी प्राप्त करने का कोई साधन नहीं है. कुतिया से भी पूछताछ नहीं की जा सकती है. यह पता करना बहुत मुश्किल है कि यह घटना कुतिया की राजी खुशी से हुई या यह बलात्कार था. मामला त्रिदेव पुलिस स्टेशन तक पहुँच गया. पुलिस ने इसे बलात्कार का नाम दिया. महेश कामथ ने भी स्वीकार किया कि हाँ, मैंने बलात्कार किया है और इसके लिए मुझे कोई अफसोस नहीं है. स्वाभाविक है, जो भी उससे हुआ वह प्रबल कामदेव ने करवाया होगा. उससे वह तृप्त हुआ होगा. फिर महेश क्यों अफसोस करे !
पुलिस के सामने समस्या थी कि महेश पर कौन सी धारा लगायी जाय. बहुत मंथन के बाद दो धाराएँ खोजी जा सकीं. भारतीय दंड संहिता की धारा ३७७ और १२्र्र. धारा ३७७ अप्राकृतिक एवं जबदस्ती यौन संबंध से संबंधित है, जबकि धारा १२ पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम से संबंधित. जाहिर है, धारा ३७७ मनुष्यों का मनुष्यों के साथ यौन संबंध को ध्यान में रखकर बनायी गयी है, पशुओं को ध्यान में रखकर नहीं. लेकिन पुलिस ने मनुष्यों वाली धारा पशुओं पर भी लागू कर दी है. क्रूरता का मामला बनता है या नहीं, यह विचारणीय है. फिलहाल कोर्ट को इस पर विचार करना है, क्योंकि मामला गिरगाँव कोर्ट में चला गया है. कोर्ट ने आरोपी को १५ सितंबर तक के लिए न्यायिक हिरासत में भेज दिया है. आरोपी के खिलाफ दो प्रकार के सबूत पेश किये जायेंगे-प्रत्यक्षदर्शियों के बयान एवं मेडिकल रिपोर्ट. मेडिकल जाँच के लिए महेश के कपड़े और वीर्य लेकर कलीना फोरेंसिक लैब में भेज दिया गया है. नाखूनों से नोचे गये कुतिया के बाल जाँच हेतु संकलित किये गये हैं. प्रयोगशाला में कुतिया के जननांगों का भी परीक्षण होगा. देश में इस तरह का पहला मामला है जो अदालत तक गया है.
पशु के दुख का अनुमान कर मनुष्य को सजा देने की तैयारी चल रही है. मेरा प्रश्न है कि अगर पशु पर यह अत्याचार है, तो मेडिकल कॉलेजों में और अनेक प्रयोगशालाओं में मेढकों, चूहों के साथ जो रोज अत्याचार होते हैं, उन पर यह मामला क्यों नहीं बनता ? खेत जोतने में, गाड ी ढोने में पशुओं को क्यों लगाया जाता है? उनका क्या अपराध है? वनस्पितयों में क्या पशओं का हिस्सा नहीें हैं? क्यों घोड ों की सवारी की जाती है और मनुष्य रणक्षेत्र में उनका उपयोग करता है? क्यों बेचारे गदहों पर बोझ लादे जाते हैं? बछड ों के हिस्से का दूध मनुष्य क्यों पी जाता है ? अगर महेश कामथ बेचारे अदालत में घसीटे जाते हैं, तो तमाम मनुष्य जाति को कटघरे में खड ा करना पड ेगा, क्योंकि मनुष्य ने पशुओं की स्वतंत्रता छीन ली है और अपने स्वार्थ के लिए उन्हें गुलाम बनाया है. उनसे बेगारी ली है और ले रहा है.
इस घटना से पूरे देश में इस बात पर चर्चा होनी चाहिए थी कि हमने काम वासना के स्वाभाविक निकास का मार्ग नहीं खोजा तभी तो मनुष्य को पशुओं के पास जाना पड ा ? एक काम तृप्त आदमी कभी स्वप्न में भी वह नहीें कर सकता है जो एक काम अतृप्त आदमी यथार्थ में कर गुजरता है. जो विषय शिक्षालयों, गोष्ठियों, सेमिनारों में विचार करने योग्य था, उसे अदालत में भेज कर क्या हमने वैचारिक दिवालियेपन का परिचय नहीं दिया है ? इस देश की वैचारिक शक्ति अभी तक क्यों सोयी हुई है ? यह घटना केवल इस मामले में ऐतिहासिक है कि अदालत तक चली गयी, वरना सामान्य है. हर गाँव-शहर में कुछ काम -पीड़ित लोग गाय, भैंस, बकरी के खुले जननांगों की ओर आकृष्ट होते हैं और प्यास बुझाते हैं. स्वाभाविक काम प्रवाह पर प्रतिबंध लगने से काम मरता नहीं है, किसी गंदे नाले से राह निकाल लेता है
७.०९.०९
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