रविवार, सितंबर 13, 2009

क्यों पिटते हैं बिहारी छात्र ?

महाराष्ट्र, असम, सिक्किम, हर जगह बिहारी छात्रों के पीटे जाने से भोलाराम दुखी है. वह मुझसे जानना चाहता है कि आखिर क्यों बिहारी छात्रों के साथ अपने ही देश में इतना दुर्व्यवहार होता है?
मटुकः-तुम्हीं बताओ भोलाराम, तुम्हें क्या लगता है?
भोलारामः-मुझे तो लगता है सर, कि यहाँ के छात्रों में कुछ विशेष बात होनी चाहिए. यह भी हो सकता है कि यहाँ के छात्रों का कल्चर, बातचीत का ढंग, रहन-सहन आदि वहाँ के लोगों को पसंद न हो ! कुछ उसमें भद्‌दापन , कुछ गँवारपन, कुछ बदमाशी दिखती हो !
मटुकः-मान लेता हूँ, थोड़ी देर के लिए कि ऐसा है. लेकिन श्रेष्ठ कल्चर का लक्षण क्या मारपीट करना है ? या बाहरी छात्रों के साथ नम्र व्यवहार के द्वारा उसे अपने रंग में रँग लेना है?. श्रेष्ठ सभ्यता कभी इस तरह से प्रतिक्रिया नहीं करती, जिस तरह से बिहारी छात्रों के साथ व्यक्त की जा रही है. अगर यहाँ के लोग गँवार हैं, तो वे भी तो अच्छे नहीं कहे जा सकते.
भोलारामः- तो मुखय कारण क्या यह है कि दूसरे राज्यों का हक मारने बिहारी वहाँ पहुँच गये हैं ?
मटुकः- पूरा भारत एक है. हम सभी पहले भारतवासी हैं, तब बिहारी, असमी, सिक्किमी या मराठी हैं. राज्यों का विभाजन शासन की सुविधा के लिए होता है. राज्य की अपनी कोई संप्रभुता नहीं है कि किसी का हक मारने कोई पहुँच गया है ! इसलिए हक मारने की बात ही गलत है.
भोलारामः-आखिर कुछ तो कारण होगा, आपको जो सही मालूम पड ता है, वह बतायें.
मटुकः-इसका एकमात्र कारण है भोलाराम, बिहार का पिछड ापन. देखते नहीं, आम जीवन में धनी आदमी किसी के घर जाता है तो घर वाला गर्व महसूस करता है. धनी आदमी के आने से लगता है कि कुछ मिल जायेगा, गरीब के आने से लगता है कि कुछ ले जायेगा. एनआरआई को बुलाने के लिए हमलोग कितने लालायित रहते हैं. क्यों ? इसलिए कि कुछ मिल जायेगा.
भोलारामः- तब बिहार के पिछड़ेपन का कारण क्या है ?
मटुकः- पिछड ी राजनीति. राजनीति जनहित से जुड ी नहीं है. हर राजनेता जनता की अज्ञानता का फायदा उठाने के लिए चालाकी का सहारा लेता है. सभी राजनीतिक दलों के लोग थोड े-बहुत अंतर के साथ मूलतः एक हैं. सबका उद्‌देश्य है जनता को भुलावे में रखकर राज करना. अभी नीतीश कुमार का भुलावा कारगर है. लालू-रामविलास का पिट चुका है. कांग्रेस का भुलावा घिसा-पिटा है. विरोधी दल का स्तर इतना गिर गया है कि सूखे का कारण सूर्यग्रहण के समय मुखयमंत्री का बिस्कुट खाना बताया जाता है. रामविलास जी को एक तरकीब सूझी थी कि मुसलमानों को मुखयमंत्री बनाने की बात करेंगे तो मेरी गोटी फिट बैठ जायेगी. इस समय कांग्रेस कह रही है, आपने इन लोगों को देख लिया, अब हमें देखिए. अरे भाई, आपको देखा नहीं है जो देखेंगे ? देखे हुए को क्या देखना है ? केन्द्र में देख ही रहे हैं. जब विरोधी इतने खतम हों, तो सत्ताधारियों के मजे ही मजे हैं. कभी उन्होंने २०१० तक बिहार बनाने का सपना दिखाया था. अब २०१५ तक विकसित बिहार बनाने का सपना दिखा रहे हैं और २०१५ में २०२० का सपना दिखायेंगे. वास्तविक विकास से विमुख राजनेताओं की स्वार्थपरता से पिछड ापन बना हुआ है.
भोलारामः-नीतीश सरकार कुछ तो काम कर रही है.
मटुकः-हाँ, ऐसा है, क्योंकि इसके पहले सत्यानाशी सरकार थी. हर साल पीछे की तरफ लौट रही थी. इसने पीछे लौटना बंद कर दिया. लँगड ी चाल से शनैः शनैः आगे बढ रही है. अगर कोई अच्छी सरकार आ जाय, तो इसकी पोल खुल जायेगी. इस सरकार के पास विकास की ठीक-ठीक अवधारणा नहीं है. पंचायत में महिला को आरक्षण दे देना, लड कियों को साइकिल बाँट देना, कुछ टूटी-फूटी सड कों की मरम्मत कर देना विकास का मानदंड नहीं होता. लेकिन कुछ नहीं होने से जितना ही हो रहा है, वह शुभ है.
भोलारामः- आप विकास के लिए सरकार को क्या सुझाव देना चाहेेंगे.
मटुकः- सुझाव देना बहुत आसान होता है, भोलाराम. इस देश में सारे आदमी सुझाव दे रहे हैं. लेकिन जब उन्हें मौका मिलेगा, उन्हीं के पीछे चलेंगे. जिनके लिए तुम सुझाव माँग रहे हो, वे तो इस सुझाव को पढ तक नहीं पायेंगे. पालन की तो बात ही नहीं है.
भोलारामः- हमें ही जानकारी के लिए बताइये, फिर उन लोगों को ध्यान में रखकर बताइये जो आपके स्तंभ को नियमित रूप से पढ़ते हैं.
मटुकः- इस मुल्क को क्रांति की जरूरत है. अनेक क्षेत्रों में क्रांति चाहिए. लेकिन फिलहाल एक ही क्षेत्र चुन लीजिए-शिक्षा में क्रांति. यह सारी क्रांतियों की जननी है. एकै साधे सब सधे. मगर समस्या यह है कि यह करे कौन ? जो सक्रिय हैं, वे राजनेता हैं, क्रांति के विपरीतार्थक; क्योंकि क्रांति होने पर सबसे पहले इस प्रकार के राजनेता विदा हो जायेंगे. कुछ लोभी निजी संपत्ति बनाने में हैं. कुछ पेट की जुगाड में जिस-तिस के आगे-पीछे कर रहे हैं. कुछ लोग पद पाने के लिए सत्ता से गुप्त समझौता कर लेते हैं. बाकी सब निष्क्रिय हैं. बिहारी छात्रों का अपमानित होना बड ी बात नहंी है, बडी बात है बिहार और देश की दशा बदलने के भाव का अभाव.

९.०९.०९

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