शनिवार, सितंबर 05, 2009

मंदार पहाड़ पर रज्जुमार्ग

न जाने कितने वर्षों से यह सुनता आ रहा हूँ कि बिहार में पर्यटन उद्योग की असीम संभावनाएँ हैं, लेकिन सरकारें सोयीं रहीं. पहली बार कोई सरकार नींद से जागी है. इस दिशा में हरकतें शुरू हो गयी हैं. सरकार मंदार पर्वत ;भागलपुरद्ध और मुंडकेश्वरी भवानी मंदिर ;कैमूरद्ध में रज्जुमार्ग बनाने को राजी हुई है. मंदार पर्वत प्राकृतिक सौन्दर्य की दृष्टि से और उससे ज्यादा धर्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है. कुछ ऐसे धर्मिक स्थल हैं जो मृतप्राय हैं और लाखों लोग प्रतिवर्ष वहाँ पहुँचते हैं. लेकिन मंदार की खूबी कुछ और है. यह बारहवें जैन तीर्थंकर की साध्ना भूमि रही है. उस साध्ना की उफर्जा हजारों वर्षेां के बाद भी अभी वहाँ के वातावरण में है. ध्यान की दृष्टि से पर्वत की चोटी पर एक गुपफा अत्यंत उपयोगी है. इस गुपफा में जैन मुनि कभी ध्यान किया करते थे. यह गुपफा अन्य गुपफाओं की तरह सूर्य की रोशनी और हवा से वंचित नहीं है. यहाँ पर्याप्त रोशनी है और इतनी तेज शु( हवा आती है कि ध्यान की गहराई में उतारने के लिए इतना भर ही कापफी है. वैसे, आम लोगों को उसके अंदर जाने की मनाही है. किन्तु उसका आकर्षण इतना तीव्र था कि किसी तरह रक्षक को मनाकर मैं वहाँ पहुँच गया और आध्े घंटे में ही लगा कि जैसे किसी दिव्य लोक के दरवाजे पर हूँ. जो लोग ध्यान की गहराई में उतरते हैं, उन्हें एक बार उस स्थल पर अवश्य ध्यान के लिए जाना चाहिए. मेरे अनुभव में उस गुपफा की दिव्यता प्रकट हुई है. वैसे, एक आध्यात्मिक झटका तो नीचे के बड़े से चट्टान के टुकड़े को देख कर ही लग चुका था. उस झटके के लोभ में मैं दो साल बाद पिफर वहाँ गया. पर, वह तो अपने वश की चीज नहीं थी, जो दुबारा पायी जा सके. जिनको ध्यान में कोई रुचि नहीं है, ऐसे ही लोग वहाँ जाते हैं. उस पर्वत की विशेषता है कि वह जैनियों का ही नहीं, हिन्दुओं का भी तीर्थ-स्थल है. वहाँ नीचे एक तालाब है. उसके बीच में एक मंदिर है. वह सुंदर है. तालाब के एक किनारे से जहाँ चढ़ाई शुरू होती है, समुद्र मंथन की कथा को प्रकट करने वाली मूर्तियाँ हैं. कहा जाता है कि अमृत के लिए पौराणिक काल में जो समुद्र मंथन हुआ था, उसमें मथानी का काम इसी पर्वत ने किया था. वे मूर्तियाँ आकर्षक हैं. उस मथानी में एक तरपफ शेषनाग का रज्जु है. एक तरपफ देवता हंै और दूसरी तरपफ राक्षस जो रज्जु को पकड़े समुद्र को मथ रहे हैं. बच्चों और धर्मिक विश्वास वाले लोगों को ये ज्यादा खींचती हैं. सबसे उफपर जैन मंदिर है, जहाँ हिन्दू पुजारी रहते हैं. इस पहाड़ पर ‘रस्सी राह’ बनेगी तो पर्यटकों को एक अतिरिक्त आनंद मिलेगा. बिहार में यह केवल राजगीर में है. रस्सी राह की चाह न जाने कितने पर्यटकों के मन में उठती होगी जिसे पूरी करने की व्यवस्था की जा रही है. खबर है कि बिहार पर्यटकों को लुभाने में गोवा से होड़ ले रहा है. मरे हुए बिहार के लिए यह एक जिंदा खबर है. खबर में आँकड़ा दिया गया है कि गत वित्तीय वर्ष में गोवा 3.51 लाख विदेशी पर्यटक पहुँचे थे, जबकि बिहार में 3.45 लाख. मेरा ख्याल है कि अगर बिहार में पर्यटक स्थलों के विकास पर पूरा ध्यान दे दिया जाय तो यह विदेशी पर्यटकों को खींचने में कापफी आगे निकल जायेगा. कारण है, यहाँ की संस्कृति. गोवा में क्या है, प्राकृतिक सौन्दर्य और विदेशी संस्कृति. विदेश के लोग ज्यादातर भारत की संस्कृति को जानना चाहते हैं, जो बिहार में उन्हें मिलेगी. बिहार इस दृष्टि से उन्नत है. धर्मिक दृष्टि से भी बौ(, सिक्ख और हिंदू ध्र्मावलंबियों के लिए सर्वाध्कि महत्वपूर्ण तीर्थ-स्थल हैं यहाँ. बिहार आगे निकल सकता है, निकलना शुरू हो गया है. बिहार नींद से जाग रहा है. 2.09.09

2 टिप्‍पणियां:

ब्लॉग आर्काइव

चिट्ठाजगत

Add-Hindi



रफ़्तार
Submit
Culture Blogs - BlogCatalog Blog Directory
www.blogvani.com
Blog Directory
Subscribe to updates
Promote Your Blog