मंगलवार, सितंबर 01, 2009

पुलिस का पार्लर प्रेम

बहुत सारी बातें भोलाराम की समझ में नहीं आती हैं और वह आश्चर्य में डूब जाता है. उसे विस्मय होता है कि आखिर पार्लर और रेस्तराँ के पीछे पुलिस पड़ी क्योें है? कौन-सा रस मिलता है पुलिस को? क्या अपराध् है उन बेचारों का? किसका अमन-चैन लूट रहे हैं वे? उन्हें देखकर क्यों किसी के दिल में आग लग जाती है? क्यों किसी का सुख किसी से नहीं देखा जाता है? कैसा है देश? कैसी है यह रीति? कैसा है कानून? कैसे हैं उनके पालनहार? क्या है कानून का उíेश्य? कृपाकर समझाकर मुझ अज्ञानी की चिंता दूर करें, सर. सोचते-सोचते मेरा माथा फटा जा रहा है.
मटुक:- चिंता न करो भोलाराम. चिंता करोगे तो इस संसार में जी नहीं पाओगे. वैरायटी के लोग हैं. सबकी अपनी सोच है, अपनी चाल है. अपने-अपने हिसाब से सभी ठीक करते हैें. तुम भी अपने हिसाब से जियो. तुम क्यों पार्लर-रेस्तराँ में मौज-मस्ती करने वालों के लिए इतने चिंतित हो? न तुम्हारी चिंता से पुलिस के छापे बंद होंगे और न पुलिस के छापों से पार्लर. दोनों चलते रहेंगे- पार्लर भी, छापे भी! स्त्राी-पुरुष मिलन शाश्वत है. वे मिलने के अनेक उपाय ढूँढते रहेंगे और पुलिस भी पैंतरे बदलती रहेगी. संसार की चिंता में पड़ोगे, तो खुद जीना भूल जाओगे.
भोलाराम:- आप ही तो कहते हैं कि यह संसार जुड़ा हुआ है, सभी एक-दूसरे से संबंध्ति हैं. सभी एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं. मैं प्रभावित हूँ और आप कहते हैं कि संसार की चिंता छोड़ो.मटुक:- तुम तो प्रभावित हो भोलाराम, लेकिन तुमसे वे प्रभावित नहीं हैं. वे तो तुम्हें जान तक नहीं रहे हैं. उन्हें कहाँ पता है कि भोलाराम नामक एक जीव हमारी चिंता में रोज-रोज मरा जा रहा है? तुम उनसे संबंध्ति हो गये, वे तुमसे संबंध्ति नहीं हैं. एकतरफा प्रेम की तरह एकतरफा चिंता भी बड़ी त्राासद होती है, भोलाराम.
भोलाराम:- जब लड़के-लड़कियाँ पार्कों में मिलते हैं, तो कहा जाता है कि सार्वजनिक रूप से अश्लीलता का प्रदर्शन हो रहा है. लेकिन जब रेस्तराँ की ध्ूपछँाही में एक पर्दे वाले केबिन में मिलते हैं, जहाँ देखने वाला कोई नहीं है, अश्लीलता का सार्वजनिक प्रदर्शन भी नहीं है, वहाँ भी पुलिस वाले पहुँच जाते हैं? आप कहा करते हैं कि लड़का-लड़की जब स्वतंत्रातापूर्वक मिलेंगे, तो प्रेम का वातावरण बनेगा. आप ही कहिये, युवा लड़के-लड़की कहाँ मिलें? अगर वे नहीं मिलेंगे, तो प्रेम का वातावरण कैसे बनेगा?
मटुक- प्रेम का वातावरण बनता है पक्के प्रेमियों से, विलासियों से नहीं. समाज में विलासियों की भरमार है, लेकिन प्रेमी नहीं हैं. दोनों में एक ही अंतर समझो, प्रेमी बहादुर होता है, विलासी कायर. प्रेमी प्रेम के लिए अपना सब कुछ झोंक देता है, विलासी अपना सब कुछ बचा लेना चाहता है. पढ़ा नहीं कि छापे पड़ते ही कैसे वे दुम दबाकर भागने लगे! प्रेम-वीर होते तो पुलिस से कहते हाँ, हम मिलेंगे. आप क्या करेंगे? हम आपका क्या लेते हैं? आपका या किसी का हमने क्या बिगाड़ा है? जाइये बालिका विद्यालय और महिला महाविद्यालय के गेटों पर. वहाँ आपको बहुत उचक्के और लपफंगे मिलेंगे जो लड़कियों पर पफब्तियाँ कसते हैं, छेड़छाड़ करते हैं. लड़कियाँ परेशान हैं उनसे. उन्हें बचाइये. यहाँ तो हम दोनों में कोई परेशान नहीं है. हम आनंदित हैं. आपका चैन क्यों उड़ गया?
भोलाराम:- कितनी आसानी से आप बोल गये सर! आपको क्या नहीं मालूम कि घर में प्रेम की मनाही रहती है! बाहर मनाही है? पुलिस घर में पफोन कर देगी, तो क्या हाल होगा? छिपकर मिलने के सिवा कोई चारा है?
मटुक:- जिस वातावरण की बात तुम कह रहे हो भोलाराम, वह छिपकर मिलने से नहीं बनेगा. सीना तानना ही पड़ेगा. निर्भय होना पड़ेगा, विचारवान होना पड़ेगा. बहस की शुरूआत घर से करनी पड़ेगी. लड़के-लड़कियाँ घर में बात करेंगे. पिता से कहेंगे, माँ से कहेंगे, भाई-बहन से कहेंगे- हमें प्यार की आजादी चाहिए.
भोलाराम:- ऐसा गुर आप बता रहे हैं कि बताते ही प्रेम समाप्त. कौन माँ-बाप बच्चों से कहेंगे कि प्रेम करो?
मटुक:- जब माता-पिता ही उनके साथ नहीं हैं, तो पुलिस विरोध् में क्यों नहीं होगी? लोगों का चुप रहना या उन्हें और उकसाना ही पुलिस का बल है. समाज स्त्राी-पुरुष मिलन के खिलापफ है, इस कारण सभी को उन पर अत्याचार का अध्किार मिल जाता है. प्रेम में जूझना पड़ता है. मुझे तो फोन पर ज्यादातर लुहेड़े ही मिलते हैं भोलाराम जो प्रेम के लिए कोई कीमत नहीं चुकाना चाहते .फोकट में पा लेना चाहते हंै. उन गदहों को टिप्स चाहिए. बताता हूँ तो कहते हंै -‘कोई जादू-टोना बताइये सर.’ प्रेम संसार की सबसे कीमती चीज है. इसलिए उसकी कीमत भी सबसे बड़ी होती है. सब कुछ अर्पित करने के बाद भी वह मिल जाय, तो इसे सस्ता ही समझना. आगे से दूसरों की समस्या लेकर मेरे पास मत आना. केवल अपनी समस्या रखना.
भोलाराम:- उनकी समस्या ही मेरे सर पर चढ़ गयी थी, सर. अब उतर गयी है.
२६.०८.०९

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