मंगलवार, सितंबर 01, 2009
बिहार को चाहिए एक प्रयोगशील पूर्ण पाठशाला
भोलाराम- कल आपने बताया कि मेरे सपनों का विद्यालय पूर्ण होगा, क्योंकि वहाँ के विद्यार्थी अंदर और बाहर दोनों दृष्टियों से समृ( होंगे. उन्हें आत्मोन्नति के साथ-साथ ध्न-धन्य से पूर्ण होने की कला सिखायी जायेगी. पिफर आपने कहा कि वहाँ निरंतर खोज होती रहेगी. खोज से आपका क्या तात्पर्य है र्टक:- अभी हमारे विद्यार्थी प्रश्न तो पूछते हैं, लेकिन खोज नहीं करते. प्रश्नों के उत्तर पाकर वे प्रसन्न हो जाते हैं. प्रश्न और उत्तर पहले से पुस्तकों में या शिक्षक के मस्तिष्क में पड़े रहते हैं और वे बने-बनाये उत्तर संप्रेषित कर दिये जाते हैं. लेकिन जीवन घिसे-पिटे प्रश्नों से नहीं चलता. जिंदगी में रोज-रोज नयी-नयी समस्याएँ उठ खड़ी होती हैं. पुराने उत्तरों से उनका समाधन संभव नहीं है. इसलिए वे जिंदगी में हार जाते हैं. इस शिक्षा से उत्पन्न शिक्षक भी हारे हुए हैं. भले ही वे बुि(जीवी हों, लेकिन बुि(मान नहीं हैं. मैं देखता हूँ कि विश्वविद्यालय में पढ़ा-लिखा सुसंस्कृत व्यक्ति भी मूर्खतापूर्ण व्यवहार करता है. प्रत्येक छात्रा में जीवन को देखने का एक जिज्ञासापूर्ण दृष्टिकोण विकसित करने की जरूरत है. जिज्ञासा केवल जानकारी तक ही सीमित नहीं होगी. वह जीवन के रहस्यों में प्र्रवेश करेगी. बच्चों पर कुछ थोपा नहीं जाना चाहिए. विद्यालय में खोज का खुला निमंत्राण होना चाहिए. भोलाराम:- लगता है कि यह विषय बड़ा लंबा है, इसलिए मैं कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न करना चाहूँगा, जिनके उत्तर संक्षेप में देने की कृपा करेंगे. उस विद्यालय में छात्रा-शिक्षक का संबंध् कैसा रहेगार्षोर्षोमटुक:- अत्यंत प्रेमपूर्ण. पहला प्रेम बच्चा माता-पिता और परिवार से प्राप्त करता है. अगर विद्यालय भी उसे उसी तरह का प्रेम दे सके तो नि:संदेह बच्चा प्रेमपूर्ण होगा. शिक्षक का प्रेम बहुत बड़ा काम यह करेगा कि उनके भीतर हीनता का भाव न रह पायेगा. दूसरी तरपफ श्रेष्ठता का भाव भी पैदा नहीं हो सकेगा, क्योंकि दोनों खतरनाक हैं. शिक्षक आदर की माँग नहीं करेेेंगे, आदर देंगे. दिया गया आदर लौटकर पुन: उनके पास आ जायेगा. वहाँ केवल मस्तिष्क की ही नहीं हृदय को विकसित करने वाली शिक्षा रहेगी. सम्पूर्ण अस्तित्व के प्रति उन्हें पे्रमपूर्ण होना सिखाया जायेगा.भोलाराम- सेक्स शिक्षा दी जायेगीर्षोर्षो सह-शिक्षा भी रहेगी.मटुक:- सह-शिक्षा सही शिक्षा है. छात्रााओं के लिए अलग स्कूल एक बीमारी है. सेक्स के प्रति उनके भीतर डाली गयी पुरानी धरणाओं से मुक्ति दिलाकर उन्हें भय मुक्त किया जायेगा. उस विद्यालय में सेक्स से संबंिध्त अत्याध्ुनिक ज्ञान से किशोरों को अवगत कराया जायेगा. वह सेक्स पर नई-नई किताबें पढ़ेगा, चर्चा करेगा. उसको समझने की कोशिश करेगा. क्या है सेक्स क्यों प्राणों में जगती है प्यासर्षोर्षो क्या है उसका राजर्षोर्षो इस तथ्य को जितना ही किशोर समझेगा, कामजन्य बीमारियों से उतना ही मुक्त हो जायेगा. जिस देश में सेक्स की सहज स्वीकृति नहीं होती, उस देश में जीनियस पैदा नहंीं होता. यहाँ के युवकेां की सारी उफर्जा सेक्स से लड़ने में ही खत्म हो जाती है. शक्ति ही नहीं बचेगी तो खोज में, आविष्कार में और सृजन में कौन-सी उफर्जा काम करेगी.भोलाराम:- क्या इससे नैतिकता पर आँच नहीं आयेगी.मटुक:- बच्चों को नकली नैतिकता की जगह असली नैतिकता सिखायी जायेगी. सत्य के लिए संघर्ष करना नैतिकता है, परिणाम चाहे जो भी हो. संघर्ष का नाम ही जवानी है. वहाँ छात्राों को कहा जायेगा कि सच्चाई और ईमानदारी के लिए लड़ने का मौका खोजते रहना. जहाँ मौका मिले, भिड़ जाना. टूट जाना, पर झुकना नहीं. सौन्दर्य के प्रति संवेदनशील होना नैतिकता है, क्योंकि परमात्मा परम सौन्दर्य है. सच्ची शिक्षा सौन्दर्य-दृष्टि का खुलना है.भोलाराम:- क्या वहाँ छात्रा-संगठन होगा? विद्यार्थी राजनीति में भाग लेंगे?मटुक- जहाँ बच्चों केा प्यार नहीं मिलता वहाँ संगठन की जरूरत पड़ती है. युवाओं के पास शक्ति होती है, उसका उपयोग राजनेता अपने हित में करना चाहते हैं. इसलिए हर पार्टी की राजनीतिक दुकान विश्वविद्यालय में चलती है और इससे केवल उपद्रव होता है. हमारे विद्यालय में राजनीति की सारी जानकारियाँ छात्रा रखेंगे, लेकिन राजनीति में भाग नहीं लेंगे. पढ़-लिखकर वे जब वास्तविक जीवन में उतरेंगे तब उनके पास इतना ज्ञान जरूर रहेगा कि कोई राजनेता उनके साथ धेखेबाजी न कर सके. वे देश की राजनीतिक चेतना को उन्नत करने का काम करेेंगे. इस देश में राजनीतिक चेतना का घोर अभाव है. लेकिन छात्रा जीवन में केवल अपनी प्रतिभा को निखारने का काम करेंगे. उसे उस उफँचाई तक पहुँचाना है जिसके आगे दुनिया की कोई प्रतिभा न हो. पूरा देश उनसे इसी की माँग कर रहा है. मटुक नाथ चौध्री 31.08.09
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें