शनिवार, सितंबर 05, 2009

सहजीवन-शास्त्र

प्रेम की जमीन पर ही सहजीवन का पौध पनपता है। स्वतंत्राता, समानता और मित्राता इसे स्वस्थ और सुंदर बनाती है। आपसी समझ इसकी आयु बढ़ाती है।वैवाहिक जीवन में भी एक प्रकार का प्रेम होता है, लेकिन आरंभ से ही नाना प्रकार के बंध्नों में जकड़े होने के कारण वह पूर्ण विकास नहीं कर पाता। उस विकास की संभावना सहजीवन में है। स्वतंत्राताकामी लोग ही सहजीवन की कामना रखते हैं। इसलिए सहजीवन के प्रेम की पहली शत्र्त स्वतंत्राता है। स्वयं स्वतंत्रा रहना और अपने जीवनसाथी अथवा साथिन को स्वतंत्राता प्रदान करना सहजीवन शास्त्रा का पहला सूत्रा है। स्वतंत्राता का अर्थ मनमानी नहीं है। अपने ही तंत्रा या विवेक के शासन में होना स्वतंत्राता है। अपना और संसार का निरीक्षण ध्यानपूर्वक करने से विवेक जाग्रत होता है। सहजीवन-शास्त्रा का दूसरा सूत्रा समानता है। परंपरागत विवाह प(ति असमानता पर आधरित है। जैसे- लड़कों का अध्कि पढ़ा-लिखा होना, उम्र में बड़ा होना, ध्न में अध्कि होना, अध्कि तीक्ष्ण बु(ि का होना इत्यादि। दो असमानों में भी मेल होता हैऋ पर वह मेल नौकर और मालिक जैसा होता है। मैं जब किशोर था तो मेरे एक मित्रा की शादी हुई। उन्होंने सुहाग रात का जो वर्णन किया वह मेरे मानस में समा गया। ‘‘ मैं पलंग पर बैठा था। उध्र से पत्नी आयी और झुककर मेरे चरणों का स्पर्श किया। मैंने उसे उठाकर गले से लगा लिया।’’ इतना सुनते ही मैं रोमांचित हो गया। आह, कहाँ नजर उठाकर देखने वाली लड़की भी नहीं मिलती है और कहाँ मित्रा के चरणों मेें झुकी समर्पिता! उस उमर में मेरे मन में सुहाग-रात का कुछ ऐसा ही स्वप्न झूलने लगा था। थोड़ा बड़ा होने के बाद इसकी असमानता दिखने लगी। इसकी कमियाँ उजागर होने लगीं।वास्तव में समानता का अर्थ ध्न, उम्र, विद्या आदि की समानता नहीं है। दोनों भिन्न वर्ण, जाति, रूप, बल, विद्या, ध्न के हो सकते हैं, लेकिन जिस जमीन पर वे खड़े होंगे वह जमीन सम होगी। दोनों के विकास के अवसर समान होंगे। विवाह में पत्नी को विकास का अवसर न देकर सारे अवसर पति को प्रदान किये जाते हैं, जबकि सहजीवन में दोनों साथ साथ विकसित होते हैं। किसी के विकास के लिए किसी का विकास रोका नहीं जाता।इसी समानता से मित्राता का भाव विकसित होता है। दरअसल सहजीवन स्त्राी-पुरुष की गहन मित्राता का ही नाम है। मित्रा एक दूसरे के लिए हर क्षेत्रा में खुले होते हैं। पति-पत्नी के संबंध् में खुलेपन के बावजूद बहुत से छिपाव चलते रहते हैं। पति अपने जीवन का राज छिपाता है, पत्नी अपने जीवन का राज छिपाती है। सहजीवन में सब कुछ खुला-खुला रहता है। यह खुलापन संबंध् की प्रगाढ़ता को अभिव्यक्त करता है। वे एक दूसरे के प्रति सहयोगपूर्ण होते हैं। तुलसी ने कहा है न- ‘निज दुख गिरि सम रजु करि जाना। मित्राक दुख रजु मेरु समाना।’ अपना बड़ा दुख भी नगण्य होता है और मित्रा का नगण्य दुख भी बड़ा दिखता है। यह बात तो दाम्पत्य जीवन में भी दिखती है। लेकिन एक अंतर हैऋ वहाँ स्त्राी जितनी इस भाव-दशा में रहती है, पुरुष नहीं रहते। मित्राता का अर्थ दो भिन्न और स्वतंत्रा ताकतों का मिलकर एक महान ताकत हो जाना है, जिससे महान कर्म सुगमता से संपादित हों। मित्राता का अर्थ अटूट भरोसा है।सहजीवन-शास्त्रा का चैथा सूत्रा समझ है। समझ न हो तो कोई संबंध् न चले। दो भिन्न आदतें, भिन्न संस्कार, भिन्न परिवेश, भिन्न सौन्दर्य-बोध् वाले व्यक्ति समझ के कारण ही साथ रह पायेंगे, वरना सेक्स आपूर्ति के बाद भागना चाहेंगे। एक दूसरे पर हावी होने की भावना सहजीवन की शत्राु है। किसी को अपने अनुसार नहीं चलाना है और न अपनी चाल के कारण किसी को ठेस पहुँचाना है। अगर दोनों के संस्कार और सौन्दर्य-बोध् टकरावे तो शांति से बैठकर विचार करना चाहिए और सहमति का कोई विन्दु तलाशना चाहिए। इसी को समझ कहते हैं। एक दूसरे को समझने से समझ बढ़ती चली जाती है।उफपर हमने सहजीवन के चार सूत्रों पर विचार किया। विवाह संबंध् वाले भी इन सूत्रों को अपना कर अपने वैवाहिक जीवन को सुखमय बना सकते हैं। पुराने विचार के कुछ लोग सहजीवन से घबराते या नफरत करते हैं, लेकिन सहजीवन वाले न किसी से घबराते हैं न किसी से नपफरत करते हैंऋ क्योंकि वे तो प्यार करने वाले लोग हैं।

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