शनिवार, सितंबर 05, 2009

semester system -1

सेमेस्टर सिस्टम की खूबियाँ ;डायरीद्ध
भोलाराम खुशी में झूमता हुआ मेरे पास आया और बोला- कल से ही आपके लिए एक-से- एक खुशखबरी आ रही है. आप जिस सेमेस्टर सिस्टम की वकालत पिछले 30 सालों से करते आ रहे हैं, वह अब पटना विश्वविद्यालय में अगले सत्रा से लागू होने जा रहा है.मटुकः- विश्वविद्यालय की जड़ता अचानक कैसे टूट जायेगी, भोलाराम? तुमने अखबारों में यह नहीं पढ़ा कि यूजीसी अनुदान के लोभ में यह सब किया जा रहा है! यूजीसी का निर्देश है कि शिक्षा और परीक्षा में सुधर कीजिए - सेमेस्टर सिस्टम , व्रफेडिट सिस्टम लागू कीजिए तब पैसा मिलेगा. विश्वविद्यालय को पढ़ाई-परीक्षा से भले मतलब न हो, परन्तु पैसे से तो है! पैसा आयेगा तभी तो कुछ काम के बहाने असली काम कमीशनखोरी, चोरी-चमारी चलेगी. एक काम वह होता है जो बोध् से, अंतःप्रेरणा से किया जाता है और दूसरा आदेश से. दोनों में बड़ा पफर्क होता है. विश्वविद्यालय के जर्जर मस्तिष्क में बोध् की ये नयी कोंपले कहाँ से पफूटेंगी? सेमेस्टर सिस्टम लागू भी होगा तो यहाँ के लोग उसका कचूमर निकाल देंगे. अलबत्ता इसकी ठीक-ठीक अवधरणा से अध्किारी और शिक्षक शायद ही अवगत हों. ठीक-ठीक लागू कैसे करेंगे?भोलारामः- क्या है इसकी खूबी?मटुकः- इसकी खूबियाँ तो बहुत हैं, लेकिन वर्तमान पढ़ाई और परीक्षा की खामियों पर नजर डालने केे बाद इसकी खूबियाँ समझ में आयेंगी. लगे हाथ तुम्हें यह भी बता दें कि वर्तमान शिक्षा-परीक्षा-प(ति यूरोप की देन है और सेमेस्टर सिस्टम की खूबी भी उसी की देन है. वहँा के लोग निरंतर प्रयोग करते रहते हैं. निष्कर्ष निकल आता है, तब भारत के बड़े-बड़े केन्द्रीय विश्वविद्यालय उसका अनुकरण करते हैं. उसके दशकों बाद पटना जैसे रद्दी-पफरोश विश्वविद्यालय को एक बाध्यता के तहत उसे अपनाना पड़ता है. अगर इसको अपने हाल पर छोड़ दिया जाय तो हजारों वर्षों तक वह अपनी लीक पर चलता रहेगा. भोलाराम, क्या तुम बता सकते हो कि वर्तमान पढ़ाई और परीक्षा की खामियाँ क्या हैं?भोलाराम- हाँ सर. साल भर क्लास कीजिए, पढ़िये, तब एक बार तीन घंटे में ही उसकी परीक्षा हो जायेगी. पहली बात तो यह कि साल भर इकट्ठी की गयी जानकारियों की परीक्षा तीन घंटे में संभव ही नहीं है. दूसरे, उस दिन लड़का बीमार पड़ गया, घर में कोई हादसा हो गया या किसी प्रकार का अपरिहार्य काम आ गया, तो साल गया. महज तीन घंटे की अनुपस्थिति से एक साल की मेहनत नष्ट हो जाती है.मटुकः- एक साल तो आजकल है न, इसके पहले तो दो सालों में एक बार परीक्षा होती थी. उस समय तीन घंटे की अनुपस्थिति दो सालों को नष्ट कर देती थी. कुछ और बताओ भोलाराम?भोलारामः- एक साल में परीक्षा होने पर पढ़ाई टलती है. लगता है, दिल्ली अभी दूर है. बहुत दिन हैं, देखा जायेगा, बाद में पढ़ लेंगे. अभी तो सिनेमा है, टीवी है, खेल-तमाशा है, आंदोलन है, गप्पबाजी है, घुमक्कड़ी है. हजार व्यस्तताओं में उलझ कर हम भूल ही जाते हैं कि पढ़ना है. अचानक परीक्षा का वफार्यव्रफम घोषित होता है. तैयारी नहीं रहने के कारण डेट बढ़ाने के लिए, दो विषयों के बीच एक सप्ताह का गैप देने के लिए वीसी का घेराव शुरू करते हैं. हंगामे में पिफर समय बर्बाद होता है. उसके बाद एक तनाव के साथ रात-दिन एक कर पढ़ना शुरू करते हैं. इस सिलसिले में बीमार भी पड़ते हैं. जितना हो पाता है, हो पाता है, बाकी के लिए चोरी और पैरवी का सहारा लेते हैं.मटुकः- एक बात और है भोलाराम. जब वर्ग चलता है, तो तुमलोग उसमें भी सिंसियर नहीं रहते होे. प्रोपफेसरों की नजर बचाकर लड़कियों केा टुक-टुक ताकते रहते हो. तुम्हारे जो साथी कुछ ज्यादा ढीठ हैं, वे तो इसकी भी परवाह नहीं करते कि प्रोपफेसर देख रहे हैं. वे तो यही समझते हैं कि प्रोपफेसर का काम है उन्हें देखना और उनका काम है लड़कियों को देखना. है कि नहीं?भोलारामः- हाँ, सर. आपसे क्या छिपाना! लड़कियों के लिए हुड़दंगबाजी होती है, कभी-कभी मारपीट भी होती है. क्लास तो क्लास है सर. उसके बाहर भी उसी की पिफकर होती है. लड़कियों से क्या बोलें, कैसे बोलें ताकि वेे पफँस जायँ. जब तन-मन में आग लगी हो, तो पढ़ाई के बारे में कौन सोचता है!मटुकः- वाद-विवाद प्रतियोगिता, गोष्ठी, परिचर्चा वगैरह होती है?भोलारामः- ना.मटुकः- पेंटिग, संगीत, नाटक आदि सिखाया जाता है?भोलारामः- कुच्छो नाय सिखाया जाता है. जिसकेा रुचि रहती है, बाहर सीखता है. कभी-कभी प्रफेशर्स- डे, विदाई-समारोह आदि में थोड़ा-बहुत गाना-बजाना हो जाता है. उसमें लड़कियों के समक्ष अपने को बड़ा दिखाने के लिए कभी-कभी मारपीट भी हो जाती है. हंगामे के डर से प्रिंसिपल और विभागाध्यक्ष जल्दी सांस्कृतिक कार्यव्रफम की अनुमति भी नहीं देते हैं.मटुकः- बाहर घूमने के लिए कोई टूर वगैरह का कार्यव्रफम बनता है?भोलारामः- टूर? आप विलैंत के हैं क्या सर? आपको नहीं मालूम है ई सब?मटुकः- जब काॅलेज में न पढ़ाई होगी, न कोई व्रिफयेटिव काम होगा, तो युवाओं की खाली उफर्जा तोड़-पफोड़ नहीं करेगी तो क्या करेगी? और नासमझ प्रशासक इन चीजों के लिए प्रयास न कर निलंबन और निष्कासन का सहारा लेता है! सेमेस्टर सिस्टम अगर ठीक से लागू हो, तो छात्रों की सारी उफर्जा पढ़ने-लिखने और सृजनात्मक कामों में लग जायेगी. उपद्रव के लिए अवकाश नहीं रहेगा. इस प(ति में प्रतिदिन पढ़ना है, क्योंकि परीक्षा सर पर हमेशा रहती है. इसमें पढ़ाई-परीक्षा साथ-साथ चलती है. व्रफमशः

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