शनिवार, सितंबर 05, 2009
शिक्षक दिवस
आज शिक्षक दिवस है. भोला भाव से भरा है. उसने मेरे लिए कोठारी की नयी गंजी और सुधा का पेड़ा लाकर टेबुल पर रख दिया है. कुछ बोल नहीं रहा है. मुझे ख्याल आया-कल इसने मेेरी फटी गंजी देख ली होगी. मेरी फटेहाली को बयाँ करने के लिए बस इतना ही काफी था. उसे नहीं मालूम कि मैं कोई कपड़ा तब तक पहनता हूँ, जब तक वह जर्जर न हो जाय. एक-एक पैसा वसूल कर छोड़ता हूँ. उसको उसने मेरी विपन्नता से जोड़ दिया है और करुणार्द्र होकर श्रद्धावश गंजी ले आया है. भोला मुझसे बेहतर आर्थिक स्थिति में नहंीं है. सोचता हूँ- ठुकरा दूँ या प्यार करूँ! अस्वीकार घातक होगा. इसलिए चिहुँक कर स्वीकार करता हूँ. कितनी अच्छी गंजी है! आज तक मैंने इतनी मँहगी गंजी नहीं खरीदी. तुम थोड़ी सस्ती खरीदते. भोला की आँखों में चमक आ जाती है. वह आशंकित था. अब बेहद खुश है. कहता है-सर, मैं चाहता हूँ कि आज आप शिक्षक दिवस की महिमा पर प्रकाश डालें. मटुकः- ( मैं इस प्रश्न पर गंभीर हो जाता हूँ.) शिक्षक दिवस की महत्ता पर मेेरे गुरु ने गहराई से प्रकाश डाला है भोला. उन्होंने इस दिवस का सार उघाड़ दिया है. उनको शिक्षक दिवस के मौके पर संभवतः दिल्ली विश्वविद्यालय में आमंत्रित किया गया था. उन्होंने अपने व्याख्यान में कहा था- शिक्षक दिवस मनाने का समय भारत में नहीं आया है. जिसको तुम शिक्षक दिवस कहते हो, वह वास्तव में राजनीतिज्ञ की महिमा का गुणगान है. एक व्यक्ति शिक्षक का पद छोड़कर राष्ट्रपति हो जाता है, इसमें शिक्षक की कौन सी महानता है ? इसमें शिक्षक की तो कोई महिमा नही,ं राष्ट्रपति की महिमा है. शिक्षक की महिमा तब प्रदर्शित होती जब कोई राष्ट्रपति अपने पद को त्याग कर शिक्षक होना पसंद करता. शिक्षक से बड़ा पद राष्ट्रपति का है. इसलिए अभी शिक्षक दिवस मनाने का समय नहीं आया है.भोलारामः- बाप रे, ई तो बेलाग उखाड़ के रख दिया है सर. क्या नाम है आपके गुरु का ?मटुकः- उनका नाम मत पूछो. वे बहुत बड़े आतंकवादी हैं. जिनके नाम से पूरी दुनिया के पाॅलिटिशियन, पुरोहित, पोप, नकली मुनि, साधु आदि जितने पाखंडी हैं, थर थर काँपते रहते हैं. सत्य और प्रेम केे जितने शत्रु हैं, उन पर उन्होंने एक साथ बमबारी कर दी. समग्र संसार में उन्होंने विस्फोटक पदार्थों का जाल बिछा दिया है जो रह रह कर विस्फोट करता रहता है. उन विस्फोटकों केा निष्क्रिय करने की विधि अभी तक दुश्मनों ने नहीं खेाजी है. इसलिए वे विवश होकर उनसे केवल नफरत कर सकते हैं. इस नफरत में भी उन्हीं की विजय है.भोलारामः- अब ज्यादा कुतूहल न बढ़ाइये सर, नाम बता दीजिए?मटुकः- नाम बहुत छोटा है भोला. जैसे तुम्हारा नाम दो अक्षरों और चार मात्राओं का है, वैसे ही उनका भी नाम है. जिस नाम का उच्चारण करते ही मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं, वाणी गद्गद् हो जाती है, आँखों में बादल घुमड़ते लगते हैं, वह नाम है ओशो.भोलारामः- ओहो, जिनके गुरु इतने बड़े आतंकवादी हों, उनके शिष्य भी तो छोटे-मोटे आतंकवादी हो ही जायेंगे ! तभी तो आप किसी को भी नहीं लगाते हैं! आपने भी तो एक बम फोड़ ही दिया है, जिसके धुएँ से अलबला कर युनिवर्सिटी ने आपको बाहर फेंक दिया है !मटुकः- ठीक समझा भोला. मैंने उस महासागर की एक बूँद चखी है. बस एक बूँद से इतना रस मग्न हूँ. कहीं मदवा बिन तोले ही पी जाउँगा, तब क्या होगा?भोलारामः- यह बात मेंरी समझ में नहंी आयी कि गुरु को चखने का माने क्या? ये मदवा क्या?मटुकः-भोलाराम; आज शिक्षक दिवस है गुरु दिवस नहीं. शिक्षक से पढ़ा जाता है. शिक्षक तो मेरे और तुम्हारे जैसे साधारण आदमी होते हैं, लेकिन गुरु कुछ हमारे -तुम्हारे जैसा और कुछ परमात्मा जैसा होता है. परमात्मा को तो चखा ही जा सकता है न. वह तो मदिरा है. उसके समान संसार में केाई नशा है! जो एक बार चढ़ गया तो फिर उतरने वाला नहीं.भोलारामः- आजकल तो लोग शिक्षक को ही गुरु कहने लगे हैं. मटुकः- लोगों की तो बात ही छोड़ दो. वे तो पत्थर को परमात्मा कहते हैं और जीवंत परमात्मा फूल को डाली से तोड़ कर मृत परमात्मा पर चढ़ा देते हैं. थोड़ी भी संवेदना होती तो वे फूल की जड़ में पानी चढ़ा देते. उतना ही पानी जितने की जरूरत है. पीपल परमात्मा पर पानी चढ़ाते तो हैं, लेकिन जड़तावश इतना चढ़ा देते हैं कि परमात्मा सड़ने लगता है. बिना बोध के पूजा नहंी होती भोला. बिना बोध के शिक्षक दिवस भी नहीं होता. शिक्षक दिवस मनाने के लिए किसी शिक्षक के पास मत जाओ. परमात्मा से प्रार्थना करेा कि हे ईश, इस देश में नये शिक्षकेां को भेजें. नये शिक्षक का अर्थ है राष्ट्र निर्माता, राष्ट्र नियंता. जो नये विचारों, नवीनतम ज्ञान और आत्मबोध से परिपूर्ण हो. जो पूरे राष्ट्र को रास्ता दिखावे, जो समग्र क्रांति का अग्रदूत बने, जो शिक्षा को बदल कर नयी उपयोगी शिक्षा लाने के लिए प्रयत्नशील हो. एक ऐसी शिक्षा जो हमें खिला दे, अपने आप से मिला दे. जो कुछ बीज हमारे भीतर पड़ा है उसे जमीन दे दे, खाद पानी दे दे. ताकि हम अंकुरित हो सकें. पल्लवित पुष्पित हो सकें. ऐसे शिक्षक मिलें, तभी शिक्षक दिवस मनाने की सार्थकता है !
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