'सन्मार्ग' में खबर छपी है कि केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल स्कूलों और कॉलेजों में कानून को विषय बनाकर पढ़ाने के बारे में विचार कर रहे हैं. अगर केन्द्रीय सरकार ऐसा करती है, तो माना जायेगा वह वास्तव में शिक्षा को जीवन के करीब लाना चाहती है. वर्तमान समय में शिक्षा की डगर अलग है और जीवन की राह अलग. दोनों को एक-दूसरे से खास मतलब नहीं. भला सोचिए, पग-पग पर कानून के ज्ञान की जरूरत पड ती है और पढ ा-लिखा आदमी भी कानून से पूर्णतः अनभिज्ञ रहता है ! छोटी-छोटी बात के लिए वकील के पास जाइये या अनजाने अपराध कीजिए या किसी के शोषण का शिकार होइये. भ्रष्ट अधिकारी भ्रष्टाचार में लिप्त होकर जनता का धन गबन कर रहे हैं और जनता कानून के ज्ञान के बिना हवन कर रहीे है ! जमीन-मकान आदि की खरीद-बिक्री का मामूली मामला हो तो मुंशी या वकील के पास जाइये. उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम की विज्ञापन के द्वारा जानकारी देने में करोड ों रुपये पानी की तरह बहाये जाते हैं, फिर भी सही-सही जानकारी नहीं होती. व्यापार से संबंधित कानून का पता न आम व्यापारियों को है, न आम नागरिकों को. महिला और दलितों के अधिकारों की रक्षा के लिए जो कानून बने हैं, उनकी जानकारी न आम महिलाओं को है, न दलितों को. पंचायती राज से संबंधित कानून की जानकारी शायद ही पंचायत में किसी को हो ! बाल अधिकार कानून की जानकारी न रहने से लोग बच्चों से गैरकानूनी काम लेते हैं. इस तरह क्रिमिनल कानून, यातायात कानून, नागरिक कानून और पर्यावरण कानून की जानकारी सबको रहनी चाहिए. अब तो इंटरनेट के जमाने में साइबर लॉ भी बना है पर जानकारी कितनों के पास है ? बौद्धिक संपदा अधिकार का पता खुद बौद्धिकों को भी नहीं रहता है. कितना अंधेरा है ! लेकिन आजादी के बाद भी यह अंधेरा हमारी शिक्षा में उसी तरह से चला आ रहा है जिस तरह से गुलामी के जमाने में था. अंग्रेजों का उदेश्य यह नहीं था कि आम जनता को कानून की जानकारी हो, क्योंकि उन्हें शासन और शोषण करना था. इसके लिए जनता का कानूनी दृष्टि से अज्ञानी बने रहना जरूरी था. लेकिन क्या भारतीय राजनीति भी उसी लीक पर नहीं चल ? इस अंधेरे में एक किरण उतारने की बात सिब्बल साहब कर रहे हैं, तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए. प्रथम कक्षा से लेकर बीए तक कानून का एक विषय अनिवार्य होना चाहिए. एक तारतम्य के साथ इसका पाठ्यक्रम तैयार होना चाहिए. बच्चों का पाठ्यक्रम दिलचस्प भाषा में चित्रों के साथ रहना चाहिए और दैनन्दिन जीवन से जुड़े कानूनों से उन्हें परिचित कराना चाहिए.
मैं शिक्षा मंत्री को एक कदम और उठाने की सलाह दूँगा. वह यह कि कानून के साथ स्वास्थ्य संबंधी भी एक पत्र प्रारंभ से बीए तक अनिवार्य करने पर विचार करें. कितनी दुखद बात है कि छोटी-छोटी बीमारी को लेकर हमें चिकित्सकों के यहाँ दौड ना पड ता है ! हम स्वस्थ कैसे रहें, इसकी शिक्षा मिलती ही नहीं. रोग कैसे पैदा होते हैं, किस रोग का इलाज किस पद्धति में कारगर ढंग से होता है, इसकी उचित जानकारी हमें अपनी पढ ाई के द्वारा मिलनी चाहिए. प्राकृतिक चिकित्सा, योग, घरेलू चिकित्सा, होम्योपैथिक चिकित्सा, आयुर्वेदिक चिकित्सा, यूनानी चिकित्सा आदि को भी एलोपैथ की तरह उस पाठ्यक्रम में उचित स्थान मिलना चाहिए. इस तरह इन पद्धतियों की जानकारी देकर हम स्वस्थ नागरिक बनाने में कामयाब हो सकते हैं. इससे धंधेबाज डॉक्टरों से आम नागरिकों को राहत मिल सकती है. ऐसी कितनी चीजें हैं जिनको पढ ाई में स्थान देकर शिक्षा को जीवन के निकट ला सकते है. खुशी की बात है कि केन्द्र में एक ऐसे शिक्षा मंत्री हैं जिनके भीतर कुछ करने का भाव देखा जा रहा है.
अगर शिक्षा मंत्री जी वास्तव में शिक्षा को लेकर गंभीर हैं तो वे देश के तमाम शिक्षाविदें, वैज्ञानिकों, साहित्यकारों, कलाकारों, बुद्धिजीवियों, चिंतकों और विचारकों को आमंत्रित कर इस पर एक सार्थक बहस छेड दें. स्व. प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने बहस की एक शुरूआत की थी, लेकिन लगता है कि उस बहस में मौलिक चिंतक जगह नहीं पा सके. उससे छनकर नवोदय विद्यालय मात्र निकला, जो कहीं से इस शिक्षा से हटकर नहीं है और आम लोगों को शिक्षित करने में अक्षम भी है. मुखय बात पुराने ढर्रे का नया विद्यालय खोलना नहीं है, नीतिगत नया निर्णय लेना है. कपिल सिब्बल सक्षम हैं, वे चाहें तो ऐसा कर सकते हैं.
मटुक नाथ चौधरी
आदरनीय सर, मै आपकी राय से सहमत हू। सरकार को स्वास्थ्य से सम्बन्धित एक पेपर की पडाई जरूर शुरु करनी चाहिए।
जवाब देंहटाएंmain aap de kavi shmat nahi ho sakti. aap mano ya na mano paraapne jo v kiya galat hi kiya hai . teacher ke pad ko kalkit hi kiya hai. mujhe to sharm aati hai yah kahne me ki main kabhi bn college me padhi hu or aapke baare me janti hu miss juli ki phd ho gai hai to taiyar rahiye aap akele rahne ko . achcha publiciti stant apnaya usne.
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