वैसे तो हर आदमी अपने को अच्छा समझता है लेकिन आदमी का अच्छा होना तब शुरू होता है जब अपनी बुराइयाँ दिखने लगती हैं। जिस दिन बुराइयाँ पूरी तरह दिख जाती है, उस दिन वे विलीन हो जाती हैं, और आदमी अच्छा हो जाता है। यह असंभव है कि आदमी अपनी बुराइयाँ देख ले और वे उसके पास रह जायँ । यह असंभव है कि हम अपनी देह पर रेंगते हुए पिल्लू को देख लें और उसे फूंक भर कर या जैसे हो उसे न हटायें। पिल्लू की भौतिक सत्ता है, इसलिए भौतिक माध्यम से हटाना पड़ता है, लेकिन बुराई एक मानसिक दशा है, वह पहले मन में पैदा होती है, इसलिए उसे भगाने के लिए उसे देख भर लेना काफी होता है। हम दूसरों में बुराई देखते हैं और दूसरे हममें। दूसरों के देखने से बुराई हटती नहीं, छिप जाती है। दूसरों की बुराई देखने का अनिवार्य परिणाम होता है कि दूसरा अब अपनी बुराई छिपायेगा। और वह हममें बुराई देखना शुरू करेगा और हम अपनी बुराई छिपाने में लग जायेंगे। बुराई भगाने का एकमात्र कारगर उपाय है अपनी बुराई देखना। तो निष्कर्ष यह आया कि जो दूसरों में बुराई देखता है, वह बुरा आदमी है और जो अपने में बुराई देखता है वह अच्छा आदमी है। राजनेतागण केवल दूसरों में बुराई देखते हैं, इसलिए वे बुरे हैं। जब राजनीति में आने के लिए अच्छे आदमी का आह्वान मैं कर रहा हूँ, तो मेरा मतलब उन आदमियों से है जो अपनी बुराइयाँ देखने के लिए तैयार हैं, देख रहे हैं और देख लिया है। जिसने देख लिया है वह प्रथम पंक्ति का नेता। जो देख रहा है वह दूसरी पंक्ति का नेता और जो देखने के लिए तैयार है , वह कार्यकर्ता। कल मैं टीवी पर श्रीदेवी का नशीला नृत्य देख रहा था- ‘मेरे हाथों में नौ-नौ चूडियाँ हैं, थोड़ा ठहरो सजन मजबूरियाँ हैं’. उधर विधानसभा में भी कृषि मंत्री रेणु देवी विपक्षियों को चूड़ियाँ दिखा रही थीं। इसे देखकर सहकारिता मंत्री गिरिराज सिंह जोश में आ गये और रेणु देवी से चूड़ियाँ लेकर विपक्ष की ओर फेंक दीं। मैं तो दंग रह गया ! चूड़ियों से कितने काम लिये जा सकते हैं ! लेकिन इसका अर्थ नहीं समझ पाया। देखा-सुना करता था कि कायर पुरुषांें में जोश भरने के लिए व्यंग्य के तौर पर स्त्रियाँ उन्हें चूड़ियों का उपहार भेंट करती थीं- कि तुम अब चूड़ी पहनो और घर में बैठो। मैं रणक्षेत्र में चली। लेकिन वहाँ तो सभी रणक्षेत्र में थे। कोई महत्वपूर्ण मुद्दे पर बहस करने की वीरता नहीं दिखला रहे थे। जिनके पास विचार नहीं होता, वे शरीर से लड़ना शुरू कर देते हैं । विधानसभा में यही हुआ। सर्वत्र तनातनी थी। लोजपा के वीर विधायक महेश्वर सिंह माइक स्टैण्ड से उखाड़ चुके थे। कहीं कायरता नहीं थी ? फिर ये चूड़ियाँ ?
मैं कह रहा था कि जो अपनी बुराई देखे वह अच्छा आदमी और जो दूसरे की बुराई देखे वह बुरा आदमी। कबीर बहुत अच्छे आदमी थे, क्योंकि उन्हें अपनी बुराई पूरी तरह दिख गयी थी-
बुरा जो देखन मैं चला मुझसे बुरा न कोय
जब भी आदमी अपने भीतर समग्रता के साथ झाँकेगा तो यही लगेगा- ‘मुझसे बुरा न कोय।’ तुलसी ने भी अपने भीतर झाँका तो यही पाया- ‘मो सम कौन कुटिल खल कामी।’ यानी मेरे समान भीतर से टेढ़ा कौन है ? मुझसे बड़ा दुष्ट कौन है ? मेरे समान सेक्सी कौन है ? कमोबेश सभी आदमी ऐसे होते हैं। जिस क्षण अपने को ऐसा देख लेते हैं, वैसे नहीं रह जाते। उसी समय संत हो जाते है।
आज ‘सन्मागर्’ में पढ़ा कि बसपा के एक विधायक रामचन्द्र सिंह यादव ने कुछ राजनेताओं एवं कांग्रेस पार्टी का उनके गुणों के अनुसार नामकरण किया है। कोई खिलाड़ी किक्रेट खेलता है, कोई फुटबाॅल, कोई बाॅलीबाॅल , लेकिन राजनेता वोट-बैंक खेलता है। अपने पाले में वोट-बैंक करने का खेल । आजादी के बाद से ही यह खेल चल रहा है। इस कला में सिद्धहस्त कांग्रेस पार्टी ने ब्राह्मण , मुस्लिम, हरिजन आदि के वोट-बैंक पर कब्जा जमा रखा था। उसका पेट बड़ा था। इन सबको निगल गयी थी। इसलिए उसका नाम पड़ा अजगर। लालू प्रसाद ने उसमें थोड़ी-सी सेंध लगायी थी। फोड़ा था मुसलमानों और दलितों को । साँपनाथ नाम पड़ा। ज्यादा खतरनाक नीतीश कुमार हैं, इसलिए नागनाथ नाम पड़ा। साँपनाथ और नागनाथ का अंतर यह है कि पहला साँप जाति का सूचक है। साँपों में कुछ विषैले होते हैं, शेष विषहीन होते हैं। लेकिन लोग साँप मात्र से डरते हैं। और भय के कारण कभी-कभी विषहीन साँप के काटने से भी मरते हैं। मुझे लगता है कि यह नामकरण सही है, क्योंकि लालूजी खुल्लमखुल्ला गलत करते थे- कहते थे कि राज करने के लिए विकास की कोई जरूरत नहीं है। उनको पटकनियाँ देकर विकास-पुरुष सामने आये। ये ज्यादा खतरनाक सिद्ध होंगे, क्योंकि गलत लोगों के साथ रहकर सच्चा विकास संभव नहीं है। वे सिर्फ जनता को भरमाने में सफल होंगे। ज्यादा जहरीला होने के कारण वे नागनाथ कहलाये। रामविलास शर्मा गिरगिट नाथ। शायद बार-बार स्टैण्ड बदलने के कारण। लेकिन विधायकजी को अपनी सुप्रीमो मायावती का भी नामकरण बिच्छूनाथ करना चाहिए जो नहीं किया। कहा न, राजनीति में सारी बुराइयाँ दूसरों में देखी जाती हैं। किन्तु जो इससे अलग राजनीति की धारा मोड़ने के लिए छटपटा रहा है, उसका नाम मटुक नाथ होगा। यानी मुकुट का मालिक उन्हें ही होना चाहिए जो वास्तव में जनता के कल्याण के लिए राजनीति करे। इस धारा के लोग इन राजनेताओं से लड़ने नहीं जायेंगे, बल्कि जिन सोये हुए लोगों का वोट पाने के लिए वे सब उपद्रव करते हैं उन लोगों को सिर्फ जगायेंगे। अच्छी राजनीति का मतलब यह नहीं कि आनन फानन कुछ दिखावटी काम करके चुनाव में खड़े हो जाइये। चुनाव में खड़ा होना बुरा नहीं है, लेकिन चुनाव जीतने के लिए बुराई से समझौता करना निश्चय ही बुरा है। इसलिए प्रेम पार्टी अगर बनती है तो उसका पहला काम होगा जनता को ज्ञान देना, प्रशिक्षित करना, सावधान करना , लेकिन किसी भी हालत में उसे भुनाना नहीं। यह काम आसान नहीं है- बहुत कठिन है डगर पनघट की।
29.07.09
जो इससे अलग राजनीति की धारा मोड़ने के लिए छटपटा रहा है, उसका नाम मटुक नाथ होगा। यानी मुकुट का मालिक उन्हें ही होना चाहिए जो वास्तव में जनता के कल्याण के लिए राजनीति करे। इस धारा के लोग इन राजनेताओं से लड़ने नहीं जायेंगे, बल्कि जिन सोये हुए लोगों का वोट पाने के लिए वे सब उपद्रव करते हैं उन लोगों को सिर्फ जगायेंगे। अच्छी राजनीति का मतलब यह नहीं कि आनन फानन कुछ दिखावटी काम करके चुनाव में खड़े हो जाइये। चुनाव में खड़ा होना बुरा नहीं है, लेकिन चुनाव जीतने के लिए बुराई से समझौता करना निश्चय ही बुरा है। इसलिए प्रेम पार्टी अगर बनती है तो उसका पहला काम होगा जनता को ज्ञान देना, प्रशिक्षित करना, सावधान करना , लेकिन किसी भी हालत में उसे भुनाना नहीं। यह काम आसान नहीं है- बहुत कठिन है डगर पनघट की।
जवाब देंहटाएंआदरनीय सर - आपके इरादे बुल्नद है आपके लिये कोई भी डगर कठिन नही ---
प्रोफेसर मटुकनाथजी आपकी विचारधारा जानकर अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंआप के विचार दूसरों से अलग और आज के माहौल में प्रासंगिक हैं, उम्मीद है की आपकी कलम अब रुकेगी नहीं.
राजनीति में सारी बुराइयाँ दूसरों में देखी जाती हैं। किन्तु जो इससे अलग राजनीति की धारा मोड़ने के लिए छटपटा रहा है, उसका नाम मटुक नाथ होगा। प्रेम पार्टी अगर बनती है तो उसका पहला काम होगा जनता को ज्ञान देना, प्रशिक्षित करना, सावधान करना , लेकिन किसी भी हालत में उसे भुनाना नहीं। यह काम आसान नहीं है- बहुत कठिन है डगर पनघट की।
जवाब देंहटाएंस्वामी जी-जब सर पर मटकी धर ही ली है तो पनघट की ओर कूच करना ही पड़ेगा और आप पार्टी बनाईये अभी 1000 से उपर पार्टी चुनाव आयोग मे पंजीक्रत हैं,आपकी भी पार्टी चले्गी। हम भी शामिल होंगे। शुभकामनाएँ
priya pravinji, apko kya likhun, samajh nahi pata. hum to ek hi prakash punj se prakash pa rahe hain. aapko mitra ke roop me pakar unhi ke charanon me jhukta hoon
जवाब देंहटाएंmitra lalitji, aabhar. aap roj ye blog dekhne ka samay nikalte hain. prem party agar un 1000 partiyon jaisi ho tab ise banane ki kya jaroorat ! tab to aise hi mere pas kai partiyon ke offer the, jinme shamil ho sakta tha.
जवाब देंहटाएंpyari taswir wale bhai inconvenientiji, puri kosis hai ki kalam ke sath hi jamin per kuch kam karoon. bahut aabhar
जवाब देंहटाएंसोये को जगाने पर वह थोडा गुस्सा तो दिखायेगा, लेकिन आप झिंझोडते रहिये
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Ap dino ne sahi kaha hai qoki rajnity ko ganda aur galat kahane se wah saph nahi ho jayagi jab tak usame achhe log nahi ayenge. Aj JNU me apaka jabab achhha laga ki rajniti ko achhha karana sabhi ka kartabya hai. Anil, Sociology, Doing Ph.D. www.zanil7.blogspot.com
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