मंगलवार, नवंबर 03, 2009

उत्तमाजी के चित्रों पर एक नजर

जिस तरह का मनुष्य परमात्मा ने बनाकर धरती पर भेजा है उसमें सौन्दर्य है. उस सौन्दर्य में कुछ लोग और निखार ले आते हैं और कुछ अभागे उसे और कुरूप कर देते हैं !
आज तक मैंने नहीं देखा कि परमात्मा ने वस्त्र पहनाकर किसी मनुष्य को धरती पर भेजा हो. वस्त्र मनुष्य पहनाता है. ऐसा भी वस्त्र हो सकता है जिससे सुन्दरता निखरे और ऐसा भी हो सकता है जिससे संुदरता बिखरे और नष्ट हो जाय. लेकिन जिस रूप में परमात्मा के घर से मनुष्य आता है, वह तो सदा सुंदर होता है. इसलिए वस्त्र तो मेरी समझ में आता है, नग्नता नहीं आती. मैं ढूँढ़कर भी इन चित्रों में नग्नता नहीं खोज पाया.
नग्नता और निर्वस्त्रपन में अंतर होता है. इन चित्रों में वस्त्र नहीं हंै, क्योंकि उस समय वस्त्र बने ही नहीं थे, मृगछाल अवश्य लोग पहनते थे अपने कटि प्रदेश को ढँकने के लिए. कामायनी में श्रद्धा निर्वस्त्र नहीं है. परिधान धारण किये हुए है. कामायनीकार उसका मनोरम सौन्दर्य खींचते हैं-
नील परिधान बीच सुकुमार
खिल रहा मृदुल अधखुला अंग;
खिला हो ज्यों बिजली का फूल
मेघ-वन बीच गुलाबी रंग.

गांधार देश के नीले रोम वाले मेषों के मसृण चर्म उनके कांत वपु को ढँक रहे थे. लेकिन उत्तमाजी ने अपने चित्रों में श्रद्धा को वस्त्र नहीं पहनाया. यह उनकी इच्छा! इसलिए हम यह तो कह सकते हैं कि उनके चित्र निर्वस्त्र हैं, आवरणरहित हैं, लेकिन उन्हें हम नग्न नहीं कह सकते. नग्नता की परिभाषा क्या है ? नग्नता का एक लक्षण श्री रूपचंद्र शास्त्री मयंक जी की टिप्पणी से प्रकट होता है. जिसे आदमी ढँकना चाहता है और ढँके हुए है, वही अगर उघड़ जाय तो उसे नग्न कह सकते हैं. मयंकजी अपनी यौन-कुंठा को ढँके हुए हैं, उनकी टिप्पणी से वह उघड़ गयी और वे नग्न हो गये ! इसकेा नग्नता कहेंगे! जो व्यक्ति नग्न होगा, उसे पूरा संसार नग्न ही दिखायी पड़ेगा. वह तो कपड़े के भीतर भी वही देख लेगा!
निर्वस्त्र होने के बावजूद इन चित्रों में कामोत्तेजना नहीं है. वैसे कामोत्तेजना जगने में बुरा क्या है, यह मैं आज तक नहीं समझ पाया ! चित्रों में स्त्री के सुडौल स्तन खुले है ,ठीक है, लेकिन स्त्री के हाथ कटि प्रदेश के नीचे चिकुर-जाल के पास क्या करने गये हैं ?
मैं कला की बारीकी नहीं समझता हूँ , फिर भी कला मुझे आकृष्ट करती है. उत्तमाजी के ये चित्र सुंदर हैं लेकिन इनमें वह कहीं नहीं दिखायी पड़ा जिसे चित्रित करना उनका उद्देश्य है. उत्तमाजी कहती हैं कि मुझे मनु के माध्यम से मन और श्रद्धा के माध्यम से दिल दिखाना है. मन का स्वभाव क्या है ? मन का लक्षण है चंचलता . जो कभी स्थिर न रहे उसे मन कहते हैं. मुझे मनु के चित्र में कहीं भी कोई चंचलता नहीं दिखाई पड़ती. दिल का अर्थ है भाव विभोर अवस्था. श्रद्धा में थोड़ा-थोड़ा यह उतरा है, लेकिन उल्लेखनीय रूप में नहीं. मेरे पास साधारण आँखें है।. उन आँखों से मुझे ये चित्र साधारण मालूम पड़े. लेकिन इन साधारण आँखों ने राधा-कृष्ण के कई रेखा-चित्रों में गजब की भाव-भंगिमाएँ देखी हैं. स्वभावतः अंदर-अंदर तुलना चलने लगती है.
मुख्य बात यह है कि चित्र हमेशा विशेष का होता है, सामान्य का नहीं. ‘मन’ और ‘दिल’ एक सामान्य अवस्था का नाम है. विशेष अवस्था में मन और दिल की अनेक विशिष्ट भंगिमाएँ होती हैं. उन विशिष्ट भंगिमाओं को चित्रित करना चित्रकार और कवि-कलाकार का काम होता है. कामायनी एक श्रेष्ठ चित्रकाव्य है. कुछ चमकते हुए बिम्बों के कारण ही यह आधुनिक हिन्दी महाकाव्यों में सर्वश्रेष्ठ स्थान पर है. मुझे इनके चित्र मोहित करते हैं. आरंभ से अंत तक न जाने कितने सुंदर चित्र हैं! अगर उन्हीं चित्रों में से किसी खास भंगिमा को पकड़कर उत्तमाजी कूँची से उसे उकेरतीं तो चित्रों में एक विशिष्टता आ जाती. चित्र देखकर ही कोई कुहुक उटता कि हाँ- कामायनी से है ! तब खासियत की बात है. अभी तो संदर्भ बताना होगा तब जाकर कोई खोजेगा, हो सकता है कोई ठीक पाये , कोई ठीक न पाये. कामायनी का प्रथम छंद ही देखिये, कैसा विशिष्ट और अनुपम है-
हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर बैठ शिला की शीतल छाँह
एक पुरुष भींगे नयनों से देख रहा था प्रलय-प्रवाह

इस चित्र की मार्मिकता को समझना और फिर उसे चित्र कला में उद्घाटित कर देना एक असाधारण बात है. ‘पुरुष’ के लिए ‘एक’ विशेषण बतलाता कि वह एकाकी है. ‘एक’ शब्द मनु के अकेलेपन की पीड़ा की पूरी टीस है. वह पीड़ा गलकर ‘भींगे नयनों’ से बह रही है. सामने अथाह विनाशकारी समुंदर लहरा रहा है जिसने उसका सबकुछ लील लिया है. स्वयं वह उस प्रलय के गर्भ से बाहर अगर हो पाया है तो हिमगिरि के उत्तुंग शिखर के कारण ही. इसीलिए उसकी छाँह को ‘शीतल’ बताया गया है.
मैं उत्तमाजी से निवेदन करूँगा कि एक बार फिर से जो चित्र उन्हें पसंद आये, उन्हें रेखाओं और रंगों से एक नया रूप देने की कोशिश करें. उसके नीचे संबंधित पंक्तियाँ डाल दें, ताकि दर्शकों को भी पता चले कि जो उन्होंने उतारा है, वह कहाँ से उतारा है. और कितना उतरा है.
चित्र अगर शार्प हो तो पंक्ति कलाकार न भी लिखे तो भी वह भीतर-भीतर गूँजने लगती है. या कहना चाहिए चित्र देखकर अगर कामायनी की कोई पंक्ति याद आ जाय तो समझना चाहिए कला सफल हो गयी. उत्तमाजी के चित्रों के साथ ऐसा नहीं है
कलाकार से निवेदन करना समझपूर्ण नहीं है, क्योंकि वह तो उनके हृदय की उमड़न है. कब किस बात पर मन उमड़ेगा कौन जानता है. लेकिन ज्योंही कला सार्वजनिक होती है लोग अपनी अपेक्षाएँ लादना शुरू करते हैं. मैं कुछ लाद नहीं रहा हूँ. सिर्फ दिशा-संकेत कर रहा हूँ. उत्तमाजी की कूँची से एक से एक श्रेष्ठ चित्र बाहर आये.
मेरी असीम शुभकामनायें.चित्र देखने के लिए शीर्षक के ‘उत्तमाजी’ शब्द पर क्लिक करें.

2 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तमा जी के बनाये चित्र मैंने भी देखें है कलाकृतियों में हमेशा बेहतरी की गुन्जायिश होती है मगर इतना अवश्य कहूँगा की उत्तमा के चित्र सम्मोहक कलात्मकता लिए हुए हैं और सौन्दर्य बोध भी !

    जवाब देंहटाएं
  2. उत्तमा जी मै सिर्फ आपकी पैंटिंग्स पर बात करना चाहता था लेकिन यहाँ कला की परम्परा पर बात हो रही है । कुछ इसी तरह की बातें खजुराहो के erotic art को लेकर हुई होंगी जब शिल्पियों ने वहाँ चित्र उकेरे होंगे और अजंता एलोरा तथा प्राचीन शैलाश्रयों मे प्राकृतिक रंगों से बनाये शैलचित्रों को लेकर भी । इन लाखों वर्षों में कला का इतना विकास हो चुका है कि यह किसी साधारण मनुष्य की समझ से परे है। न केवल कला बल्कि साहित्य में भी यह घटित हो चुका है लेकिन इसे सायास ही जानना होगा । आप कलाकार हैं इसलिये कला के इतिहास को जानती होंगी बस कला के प्रति समर्पण भाव से काम कीजिये और बाज़ारवाद के मोह से बचे रहिये । चित्रों मे बहुत कुछ कहने की बातें है और केवल एक शब्द उत्तम कह कर इनकी व्याख्या नही की जा सकती । चित्रों की व्याख्या होती भी नहीं उन्हे बिना उत्तेजित हुए अपनी परमपरा और मनुष्य के इतिहास की समझ के आधार पर महसूस करना होता है । जिस तरह से एक कविता में अनेक अर्थ खोजे जा सकते है उसी तरह एक चित्र के निहितार्थ भी अनेक हो सकते हैं चित्रकार केवल शीर्षक से संकेत कर सकता है , पंक्तियाँ देने से दर्शक उस पंक्ति या उस परिवेश के इर्द गिर्द सोचने को बाधित हो जाता है । -शरद कोकास "पुरातत्ववेत्ता " http://sharadkokas.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं

ब्लॉग आर्काइव

चिट्ठाजगत

Add-Hindi



रफ़्तार
Submit
Culture Blogs - BlogCatalog Blog Directory
www.blogvani.com
Blog Directory
Subscribe to updates
Promote Your Blog