सोमवार, नवंबर 09, 2009

कुलपति की नियुक्ति प्रक्रिया पर पुनर्विचार

किसी भी पद के लिए किसी व्यक्ति की नियुक्ति होती है तो उसकी एक प्रक्रिया बनायी जाती है. प्रक्रिया ऐसी होनी चाहिए जिससे यह स्पष्ट रूप से जाँच हो सके कि जिस काम के लिए कोई व्यक्ति चुना जा रहा है, वह उस काम के लिए उपलब्ध व्यक्तियों में सर्वाधिक उपयुक्त और फिट है . हमारे देश का दुर्भाग्य है कि किसी पद के लिए जिस प्रकार की योग्यता चाहिए उसके अनुरूप परीक्षण प्रक्रिया नहीं है. जैसे अगर किसी शिक्षक को बहाल करना है तो यह देखना चाहिए कि उन्हें पढ़ाने आता है या नहीं; यह देखना चाहिए कि उन्हें शिक्षा कर्म से गहरा लगाव है या केवल बेरोजगारी दूर कने के लिए इस पेशे में आना चाहता है? उसके पास जरूरत भर ज्ञान है या नहीं इत्यादि. लेकिन वर्तमान शिक्षक बहाली प्रक्रिया का इन चीजों से कुछ लेना देना नहीं है. यही हाल लगभग सभी प्रकार की नियुक्ति प्रक्रियाओं का है.
बिहार के कुछ विश्वविद्यालयों में कुलपतियों और प्रतिकुलपतियों की नियुक्ति होने वाली है. इसलिए सरकार को सजग करने के ख्याल से ‘हिन्दुस्तान’ में संजयजी की रपट छपी है. उनका कहना है कि कुलपतियों की नियुक्ति में सुविधा के लिए पूर्व कुलाधिपति आर. एस. गवई. ने जो सर्च कमिटी बनायी थी उसमें विवादास्पद लोग थे, परिणामतः ऐसे लोग नियुक्त हुए जिनमें बहुतों के दामन में दाग लग गये. उन कुलपतियों के कार्यकाल में प्राचार्य और कर्मचारियों की नियुक्ति विवादास्पद रही. पटना विश्वविद्यालय में बीएड नामांकन घोटाला हुआ. पिछले छह महीनों से विश्वविद्यालय छात्रान्दोलन के कारण अशांत है, इत्यादि.
हे संजय, पत्रकार होने के नाते सरकार को सावधान करना आपका दायित्व है. आपने ठीक लिखा है. लेकिन जितने भी घोटाले आपने गिनाये हैं , वह ‘रघुकुल रीति’ है जो सदा से चली आ रही है. सरकार अपनी चाल में ही चलेगी. वह सदा से चली आ रही रीति का ही पालन करेगी.
कानून कहता है कि राज्यपाल सरकार की सलाह से कुलपति नियुक्त करेंगे. यानी राजनीति का शिक्षा में सीधा हस्तक्षेप रहेगा ! मूल सवाल यह है कि न्यायपालिका की तरह शिक्षा की स्वतंत्र सत्ता होनी चाहिए या उसे राजनीतिज्ञों के अधीन काम करना चाहिए ? असली समस्या यहाँ यही है. अगर राजनीति के अधीन शिक्षा व्यवस्था होगी तो लिखने वाले हजार पृष्ठ लिखें उससे क्या फर्क पड़ता है. जैसा चल रहा है, वैसा बेखटके चलता रहेगा ! अभी शिक्षा का राजनेताओं के द्वारा अपने हित में इस्तेमाल करने वाला कानून विद्यमान है. इसलिए सवालिया निशान कानून पर लगना चाहिए. सर्च कमिटी वफादारों का सर्च करने के लिए बनी है, विख्यात विद्वानांें, शिक्षाविदों और पढ़ाई-लिखाई में गहन रुचि रखने वालों की खोज के लिए नहीं !
वर्तमान कानून के रहते हुए भी शिक्षा में क्रांति हो सकती है, अगर उसका अनुपालन दृढ़ इच्छाशक्ति, विवेक और सद्भाव के साथ किया जाय. थोड़ी देर के लिए मैं अपने को कुलाधिपति मान लेता हूँ. मुझे कुलपति नियुक्त करने हैं. मैं कैसे करूँगा ? मैं आवेदन आमंत्रित करने के लिए एक निश्चित योग्यता निर्धारित करूँगा. विश्वविद्यालय के वे रीडर और प्रोफेसर आवेदन कर सकते हैं जिनका शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान हो. देश के ऐसे चिंतक-विचारक, कवि-कलाकार, साहित्यकार, संत, वैज्ञानिक आदि आवेदन कर सकते हैं जिन्हें शिक्षा का सुंदर माहौल बनाने में गहरी दिलचस्पी हो और वह कला आती हो. संबंधित योग्यता को प्रदर्शित करने के लिए वे अपनी लिखित योजनाएँ जमा करेंगे. उसमें यह साफ-साफ लिखा रहेगा कि वे विश्वविद्यालय में क्या-क्या काम करेंगे और कैसे करेंगे. उन्हें क्रमशः एक महीना, छह महीने और तीन वर्ष की कार्य-योजनाएँ प्रस्तुत करनी पड़ेंगी. उन्हीं के आधार पर उन्हें साक्षात्कार के लिए बुलाया जायेगा. साक्षात्कार के बाद चुनिंदा व्यक्तियों को अगले परीक्षण हेतु एक महीना के लिए कार्यभार सौंपा जायेगा. उन कार्यों के ठीक-ठीक अनुपालन के बाद उन्हें छह महीने का कार्यकाल दिया जायेगा. अगला छह महीना भी योजनानुसार संतोषजनक कार्य करने के बाद उन्हें तीन वर्ष का समय उनकी योजना के आधार पर दिया जायेगा. हर पल वे कसौटी पर रहेंगे. अपनी योजना को पूरा करने में असफल होने पर उन्हें वापस बुला लिया जायेगा.
यह सबकुछ मुझ पर निर्भर होगा. मैं ही उसके लिए जिम्मेदार होऊँगा. अगर वास्तव में शिक्षा में क्रांति लाना मेरा उद्देश्य है तो वह लायी जा सकेगी, अगर सुधार लाना उद्देश्य है तो सुधार होगा. लेकिन अगर मेरा उद्देश्य पैसा कमाना, अपने आदमियों को विश्वविद्यालय में भरना और अपना काम निकालना होगा तो इस दृष्टि से मैं अपने कुछ धूर्त और चालाक शिष्यों को सर्च कमिटी में रख दूँगा और कहूँगा- पट्ठे, उचित व्यक्ति की खोज करो. मेरे मनोभाव तुम्हारे सामने स्पष्ट हैं.

3 टिप्‍पणियां:

  1. बन्धु यह कोई नई बात नहीं है. ऐसे-ऐसे लोग कुलपति पद को शूशोभित कर चुके हैं कि अब भले लोगों, ख़ास कर प्रतिष्ठित विद्वानों को तो इस पद की ओर देखते हुए भी शर्म आएगी. अगर विश्वास न हो तो अपने पड़ोसी उत्तर प्रदेश की ओर एक नज़र डाल लें.

    जवाब देंहटाएं
  2. प्यारे बंधु मटुकजूली जी
    होना तो यह चाहिये कि स्वास्थय मन्त्री के पद के लिये केवल चिकित्सा से जुडे लोगों के, रेल मन्त्री के लिये रेलवे से जुडे, वित्तमन्त्री के लिये अर्थशास्त्र से जुडे लोगों के ही आवेदन स्वीकार करके आमचुनाव कराये जायें । उसके बाद वह मन्त्री अपने मन्त्रालय में उस विषय और विधा में अनुभवी लोगों को ही शामिल करे।

    प्रणाम स्वीकार करें

    जवाब देंहटाएं

ब्लॉग आर्काइव

चिट्ठाजगत

Add-Hindi



रफ़्तार
Submit
Culture Blogs - BlogCatalog Blog Directory
www.blogvani.com
Blog Directory
Subscribe to updates
Promote Your Blog