बुधवार, नवंबर 25, 2009
एक स्त्री का अतिवाद
वह स्त्री और कोई नहीं गीताश्री हैं. पुरुष-विरोध की अन्तज्र्वाला से विदग्ध एक प्रतिक्रियावादी स्त्री. ये अकेली नहीं हैं, इनका एक छोटा-मोटा गिरोह है जो इनके अतिवाद में सुर में सुर मिलाता है. न जाने कौन-सा घाव कहाँ से इन्हें मिला है, जिसका मवाद इनकी लेखनी से रिसता रहता है. ये आँखें मूँदकर स़्त्रीवाद की नुमाइंदगी करती हैं. फलतः इनका स्त्रीवाद स्त्रियों के खिलाफ जा रहा है. इनका वश चले तो ये सारी स्त्रियों को पुरुष बनाकर ही दम मारेंगी. जिस दिन स्त्रियाँ पुुरुष हो जायेंगी, उस दिन वे स्त्रीत्व के प्र्र्र्रथम दर्जे से गिरकर दोयम दर्जे की पुरुष रह जायेंगी. ऐसी स्त्रीघातिनी स्वयंभू प्रतिनिधि से स्त्रियों को सजग रहने की जरूरत है.
जूली के एक संतुलित लेख ‘महिला संगठन का औचित्य’ पर इनकी बेसिर-पैर की प्रतिक्रिया देखी तो लगा कि आवेश में संभव है कि कोई प्रलाप करे. लेकिन जब आज ‘राष्ट्रीय सहारा’ में इनकी एक टिप्पणी ‘सपनों पर फरमान’ पढ़ी तो लगा कि यह तो इनका स्थायी विलाप है. ये लक्षण अशुभ संकेत देते हैं. किसी मानसिक अस्वस्थता की तरफ इशारा करते हैं, क्योंकि ये सही और संतुलित बात पर बहुत जोर से भड़कती हैं.
फिलहाल मामला महिलाओं के फाइटर पायलट बनने को लेकर है. पहली बात तो यह कि युद्ध स्त्रियों का स्वभाव नहीं है. सेना में भरती होना और मार-काट करना पुरुषों के नसीब में है. लेकिन आधुनिक युग में कुछ ऐसी स्त्रियाँ भी पैदा हो रही हैं, जिनमें मर्द के हारमोन ज्यादा हैं जो उन्हें लड़ने-भिड़ने के लिए उकसाते रहते हैं. ऐसी पुरुषनुमा स्त्रियाँ चाहें तो बेशक सेना में भरती हो सकती हैं. तब उन्हें मातृत्व का मोह छोड़ना होगा. मर्द और औरत एक साथ बनना संभव नहीं है. मर्द बेचारा अभागा है कि वह गर्भधारण नहीं कर सकता. अगर वह चिल्लाये कि हम जीन बदल कर गर्भ धारण करेंगे और मर्द भी बने रहेंगे, तो कुछ ऐसा ही अरण्यरोदन गीताश्री का है.
सेवानिवृत्त एयर मार्शल ए. के. सिंह का बयान ‘राष्ट्रीय सहारा’ के ‘आधी दुनिया’ नामक विशेष पेज पर छपा है. वे मधुरता के साथ लड़ाकू स्त्रियों को सेना की न्यूनतम सेवा शर्तों के पालन के लिए राजी करना चाह रहे हैं. बेचारे कहते हैं - ‘ इसमें दो मत नहीं कि महिलाएँ किसी भी मामले में पुरुष से कम नहीं हैं. ’ इसके आगे डर के मारे यहाँ तक कहते हैं कि ‘ उनकी फिजियोलाॅजी और बायोलाॅजी भी उन्हें फाइटर पायलट बनने से नहीं रोकती.’ जैसे बच्चे को फुसलाया जाता है, वैसे ही ऐसी स्त्रियों के साथ उन्हें व्यवहार करना पड़ रहा है. लिखते हैं- ‘ लेकिन जब वे ज्यादा दिनों तक मेडिकली अनफिट रहेंगी (माँ बनने के कारण ) तो फ्लाइंग नहीं करेंगी, इसलिए कैरियर बनाने के लिए उन्हें एहतियात तो बरतना ही होगा. फाइटर पायलट के लिए नियमित उड़ान करना बहुत जरूरी है.’
भारतीय वायुसेना के उप प्रमुख पी. के. बारबोरा ने दो टूक लहजे में कहा- ‘ महिलाओं को फाइटर पायलट बनने के लिए, कैरियर और प्रजनन में से किसी एक को चुनना होगा.’ गीताश्री को इस सत्य से चोट पहुँची. उन्होंने इसे ‘पुरुषवादी सोच का फरमान’ बताया. ‘महिला की कोख पर बवाल’ कहा. वैसे बवाल की जगह ‘हमला’ शब्द सटीक होता. उनकी समझदारी कहती है- ‘ क्या हो जायेगा अगर महिलाएँ माँ बनने की प्रक्रिया के दौरान एक साल घर बैठ जायेंगी तो ? क्या एक साल के गैप के कारण माँ बनने पर पाबंदी लगा दी जाए ? सरकार कंगाल हो जाएगी ? क्या राष्ट्रहित खतरे में पड़ जायेगा ? ( प्रश्न चिह्न मेरी तरफ से है. गीताश्री केवल प्रश्न पूछना जानती हैं, प्रश्न सूचक चिह्न लगाना नहीं !)
कहा जाता है कि एक फाइटर पायलट के बनाने में 11 करोड़ रुपये खर्च होते हैं. गीताश्री को इसकी परवाह नहीं है. इतने पैसे मिट्टी में मिलते हैं तो मिलें - ‘‘ मैया, मैं तो चन्द्र खिलौना लैहों’. कहा जाता है कि बाल हठ और स्त्री हठ एक समान होता है. श्री ए.के.सिंह ने चेताया कि ‘ महिला फाइटर पायलट को विभिन्न अभियानों ( काॅम्बेटेंट ) में जाना पड़ सकता है. उन्हें पकड़े जाने पर दुश्मन द्वारा पुरुषों के मुकाबले ज्यादा टाॅर्चर होना पड़ सकता है.’ ज्यादा टाॅर्चर का मतलब बलात्कार से है. सोचिये, महिला पायलट पकड़ ली जायेगी तो दुश्मन सेना के बीच कैसी दावत उड़ेगी ! इस समस्या पर गीताश्री मौन हैं. मौनं स्वीकृति लक्षणम्. उनके सपने पूरे होने चाहिए. उस पर सेवा शर्तोें का कोई फरमान नहीं चल सकता.
मेरा चेला भोलाराम पूछता है- अगर आप वायुसेना प्रमुख होते तो क्या करते ?
मटुक:- भोलाराम, मैं महिलावादियों के रुख को देखते हुए महिला पायलटों को लड़ाई के मैदान में अगली पंक्ति में रखता और इसकी रिर्पोटिंग के लिए गीताश्री को मोर्चे पर भेज देता.
भोलारामः- इस तरह आप सारी महिलाओं को मरवा डालते ?
मटुक:- महिलाओं की इच्छापूर्ति के लिए कुछ भी किया जाना चाहिए.
भोलारामः- इसके बाद भी महिला आपको घेरती कि आपने एक साजिश के तहत सबको मरवा दिया ?
मटुक:- आज तक लड़ाई के मैदान में पुरुष मारे जाते रहे हैं, अब स्त्रियाँ मरना चाहती हैं तो उन्हें रोकने वाला पुरुष कौन होता है ?
भोलाराम:- इनी-गिनी स्वेच्छाचारी बिगड़ी स्त्रियों की बात रखने के लिए आप देश की रक्षा का ख्याल नहीं करते ?
मटुक:- तुम्हारे ‘ बिगड़ी’ शब्द से तुलसीदास याद आ गये भोला. कुछ पंक्तियों के कारण वे स्त्री-विरोधी कहे जाते हैं. उनकी कुख्यात पंक्तियों में एक यह भी है-
महाबृष्टि चलि फूटि किआरी. जिमि सुतंत्र भए बिगरहिं नारी.
गीताश्री जैसी स्त्रियों की ‘स्वतंत्रता’ इसी कोटि की है. स्त्रीवाद का अतिरेकजन्य आवेश ‘ महाबृष्टि’ है जिससे संतुलित विचार रूपी क्यारी फूट चली है.
भोलाराम:- वैसे तो मैं तुलसीदास की इस पंक्ति का कायल नहीं था, लेकिन जिस संदर्भ में रखकर आपने इसका अर्थ किया है, वह तो बिल्कुल सटीक है !
मटुक:- कौन जानता है भोलाराम कि तुलसीदास को ऐसी स्त्री से पाला न पड़ा होगा ? जिस व्यक्ति में विवेक नहीं होता, वह स्त्री हो या पुरुष , ऐसे ही ऊल-जलूल लिखता है. उनके लिए अखबारों-पत्रिकाओं के पन्ने खाली पड़े रहते हैं !
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अगर तुलसीदास और बलात्कार-प्रसंग को छोड. दिया जाए तो बाक़ी के आपके लेख से मैं सहमत हूं। जहां तक बलात्कार की बात है तो हर उस क्षेत्र में जहां स्त्री के सामने या साथ पुरुष होगा, कम या ज़्यादा, बलात्कार के ख़तरे तो रहेंगे ही। इस तरह तो स्त्री कहीं जाए ही नहीं, घर में बैठे और यदा-कदा के ‘स्वैच्छिक’ बलात्कारों को भी झेले। दूसरे मेरा आपसे विनम्र निवेदन है स्त्री-पुरुष के मसलों को लेकर आप जो पारंपरिक भाषा या शब्दावली इस्तेमाल कर रहे हैं, उससे बचें। एक ओशो-प्रेमी के मुख से ऐसी भाषा की अपेक्षा वे तो नहीं कर सकते जो ओशो को ठीक से जानते-समझते हैं। हो सकता आपको इस समाज नें कुछ कड़वे अनुभव या असहनीय ज़ख्म दिए हों पर उसका प्रत्युत्तर आप उसी समाज जैसी भाषा और मानसिकता में शामिल होकर तो न दें। और स्त्री-पुरुष मामलों में प्रकृति को भी इस तरह निर्णायक तत्व मत बनाईए। लैंगिक भिन्नता और गर्भधारण क्षमता को छोड़ दें तो कौन से गुण-दोष-स्वभाव वास्तव में स्त्री के हैं और से वास्तव में पुरुष के, इसे तय करने में इतनी जल्दबाज़ी न करें। आगे भी बात करेंगे।
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